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मेहनत।


फा नाम उत्पादक श्रम । गत, लफड़ी भार लाला जड़ पदार्थ हैं । पर कास्तकार, ग्वन में प्रमान पैदा करता है, बदई लकड़ी का हल बना देता है. प्रहर लाहान लॉ का फाल तयार कर देता है । अर्थात् चेतनारहित जड़ चीज़ों का य लोग उपयोगी बना देनं ।। इन उपयोगी वस्तुयों की मदद से सम्मति उत्पन्न होती है भार थेग्युट भो प्रत्यक्ष सम्पत्ति । अथवा यो कहिए का इनकी मदद से लोग व्यवहार की ऐसी बोजगदा करन जिनका राज़ काम पड़ता है ! ल मार फाल से पेत जान जान । पारग्वेत से प्राप्त हुए अनाज को खाकर मनुष्य सारं सांसारिक काम करत । अतएव इस तरह का श्रम प्रत्यक्ष उत्पादक

मनलच या कि जिन श्रम पदार्थों में प्रत्यक्ष उपयोगिता पाजाती।" बत प्रत्यक्ष उत्पादक कहलाता और जिग्न श्रम में अप्रत्यक्ष उपयोगिता पानी है. वर अप्रत्यक्ष उम्पादक । कढ़ाई के श्रम ने दल नैयार कर दिया । हल इमें प्रत्यक्ष दंग पड़ता और उसकी गिनती सात में है। अतएव घदई का श्रम प्रत्यक्ष उत्पादक पर प्रध्यापकों और ग्रन्थकारों का श्रम दूसरी तरह का है। उनके अम ने प्रत्यक्ष सम्मतिना नहीं पैदा होती, पर उनके श्रम की बदोलन जिन लोगों को शिक्षा मिलती है वे उसको सहा- यता से समतिपदा कर सकन । हसीन इस प्रकार का श्रम प्रत्यक्ष उत्पादक है।

किसी चीज़ के उत्पादक बनाने-किसी चीज़ में उपगितापदा करने से या मतलब है कि इससे सम्पत्ति की अधिकाधिक उत्पत्ति हाती जाम । इस हिसाब से जो रूपया या जो पदार्थ दीन दुनियों को. लंगड़े-ठूलों को, अन्ध- अपाहिजों को दिया जाता है या बिलकुल ही अनुत्पादक है। सम्पत्तिशाख की दृष्टि से इस तरह का दान जरूर निषिद्ध है। जब ऐसा दान निरिड है तथ काम करने की शक्ति रणनेवाला. अर्थात् श्रम द्वारा सम्पति पैदा करने की योग्यता रखनेवालों, को दान देना तो और भी निषिद्ध है। पयोंकि दान के भरोसे रहकर वे समत्ति उत्पन्न करना बन्द कर देत पार देश की दरि- दत्ता बढ़ाने का कारण होने हैं। मन्दिर, मसजिद और गिरजाघर बनाना, धार्मिक कामों में लाग्य कपये कना. दीर्धादि की यात्रा करना भी सम्प- स्ति-शास्र के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है । क्योंकि इन कामों में जो सम्पत्ति खर्च हाती है और जो श्रम उठाना पड़ता है वह उत्पादक नहीं । पर इससे यह न