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सम्पत्ति-शास्त्र ।


देता । अँगरेजी गवर्नमेंट हिन्दुस्तान में शासन भी करती है और जमींदारी भी। इस देश की प्रायः सारी जमीन पर गवर्नमेंट का ही स्वत्व है । वह दस, बीस, या तोस चर्य वाद नये सिरेसे जमीन को मापजोख करके लगान बढ़ा देती है। पार जो अत्रिक लगान नहीं देता उसे बेदखल कर देती है। इसीसे किसान मोर ज़मीदार जमीन को उत्पादक बनाने के लिए विशेष वर्च नहीं करने । फल यह होता है कि उसकी उत्पादक शक्ति दिन पर दिन क्षी होती जाती है और खेती को उपज से ही जीवननिर्वाह करनेवालों की लोटा थाली बिफती चली जाती है । इस देश में गवर्नमेंट न कहीं तो ज़मींदारों को जमीन उठा रमन्त्री है, कहीं रियाया को । जहां जमोदारी बन्दोबस्त है वहां जमादार काश्तकारों को ज़मीन उठाते हैं पार उन्हें बेढ़- वल करने का अदतियार रखते हैं । जहाँ गवर्नमेंट रियाया को ज़मीन उठाती है वहाँ. कारण उपस्थित होने पर वह खुद ही काश्तकारों को बेदखल कर देती है। हां, बंगाल में जमीन का बन्दोवस्त इस्तमरारी है । उसमें फेरफार नहीं होता। जो एक बार हो गया है वही वना हुमा है । इसीसे वहां के ज़मींदार जमान को उत्पादक बनाने में बहुत कोशिश करते हैं। इसीसे वहां की आर्थिक दशा और प्रान्तों की अपेक्षा अच्छी है । हिन्दुस्तान कृषि-प्रधान देश है । इससे इस देशवाले यदि जमीन की उत्पादक शक्ति बढ़ावे तो उन्हें बहुत लाभ हो ।

तोसरा परिच्छेद

मेहनत ।

सम्पत्ति की उत्पत्ति के लिए जिस तरह जमीन की ज़रूरत है उसी तरह श्रम अर्थात् मेहनत को भी ज़रूरत है । यदि श्रम न किया जाय तो सम्पत्ति की उत्पत्तिही न हो । विनिमयसाध्य होनाही सम्पत्ति का प्रधान लक्षण है। पर बिना श्रम के पदार्थों में विनिमयसाध्यता नहीं पाती । यह गुग श्रम के हो योग से पैदा होता है । जंगलों में सैकड़ों वनस्पतियों आपही आप उगती है। वे बड़े बड़े रोग दूर करने में दबा का काम देती हैं, अर्थात् बहुत उपयोगी होतो हैं, तथापि जंगल में उनको कुछ भी कीमत नहीं । वहाँ