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विदेश व्यापार पर करे। झरूर लाभ पहुँच सकता है। किसी किसी का स्याल है कि चिलायत से आने वाले कपड़े पर कर लगाने से माल महँगा बिकेग; इससे अपने देश वाले के घर से अधिक रुपया जायगा भैर ग़रीच आदमियों को बहुत तकलीफ़ उठानी पड़ेगी। पर पूर्वोक्त उदाहरण से यह सम्भावना भ्रान्ति-पूर्ण मालूम होती है। कर लगाने से शुरू शुरू में यदि कपड़ा महँगा भी है। जायगा ते बहुत दिन तक महँगा न रहेगा । उसका नाप ज्यहाँ कस देगा त्यहाँ सस्ता बिकने लगेगा । अतएघ अपने देश की हानि न होगी । कर लगाने के कारण उलट: अपने देश की अमिहनी पैठ बैठाये बढ़ जायगी । इसके सिचा कपड़े के बदले में जाने वाला अनाज महंगा हो जाने से उसकी क़ीमत भी अधिक मिलने लगेगी । इस प्रकार अपने देश का दो तरह से फ़ायदा हेगा । कुछ समय से स्वदेश-वस्तु-व्यवहार को प्रीति भारतवासियों में थोड़ी बहुत जागृत हुई है । लोग अब विलायती कपड़ा कम पसन्द करने लगे हैं। फल यह हुआ है कि पप्पुले की अपेक्षा बिलायर्सी कपड़ा सस्ता बिकने लगा है। यह पूर्वोक्त सिद्धान्त के सच होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है । विलायती कपड़े पर इस समय जे साढ़े तीन रुपये सैंकड़े के हिसाब से फर' लगता है वह बहुत कम है। उससे इस देश को यथेष्ट अभइनो नहीं होती। यदि वह कुछ बढ़ा दिया जाये तो इस कर-वृद्धि से हिन्दुस्तान की कुछ भी हानि न हो। उलय लाभ की मात्रा और अधिक है। जाय। इससे स्वदेशी कपड़े के उद्योगधन्धे की भी विशेष उन्नति ही { पर ऐसा होना संभव नहीं जान पड़ता । क्योंकि, हम लोगों को स्वदेश-वस्तु-प्रियता के कारस्य चियिती कपड़े का खप जी कम होने लगा है ६ विलायती व्यापारियों और व्यवसायियों के हृदय में या उत्पन्न करने का कारण हो रहा है। वे लोग वर्तमान कर को बिलकुल ही उद्धवा देने की फ़िक्र में हैं। अभी कुछ समय हुआ, उन्होंने बचई के व्यवसायियों को लिखा था कि वो हम तुम दोनों मिल कर कपड़े के कर को उठा देने के लिए गवर्नमेंट से प्रार्थना करें। हम लोग मायात कपड़े फा कर उठाने के लिए लिखें, तुम लोग यति कपड़े की कर उठा देने के लिए । और कपड़ा यहां से धिंदेश जाता है उस पर भी कर लगता है, पर विदेश से अाने वाले कपड़े की अपेक्षा कम लगती हैं। अतएव, दोनों कर छठा दिये जायँ तो चिलायत बाल ही को विशेष लाभ हो, इस देश वालों को उतना