पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

परोक्ष कर। चच सकता । एक छदाम का भी नमक लेने में सरकार के कर देना पती है। इस तरह की कर शायद ही पृथ्वी की पीठ पर धैर कही लिया जाता हो। इस बात की गवर्नमेंट समझदो है। इसीसे वह इस कर के कर्म फरती जाती है । गत पाँच सात वर्षों में दो दफ़ इस कर में कमी की गई है। लिलायत से जो कपड़ा इस देश में आता है उस पर साढ़े तीन रुपये सकडे के हिसाब से कर देना पड़ता है। इस देश में कपड़े के व्यवसाय की उन्नति करने के लिए यहां के कपड़े की मिली फी रक्षा के लिए यह कर नहीं लगाया गया । किन्तु थोड़ी सी सरकारी आमदनी बढ़ाने के लिये लगाया गया है। पर विलायत के व्यवसायियों ने इस कर का विरोध किया । उन्होने कहा कि इस फर के कारण हमारा कपड़ा महँग होरहा हैं । अतएब उसका ज़र्च हिन्दुस्तान में कम हो जायगई । हिन्दुस्तान वाले अपने ही देश । का कपड़ा कि लेंगे। उनकी बात मान कर गवर्नमेंट ने यहां के देशी कपड़े पर भी एकसाइज़ में नाम का कर लगा दिया । यह बात गवर्नर्मट ने एडम स्मिथ के सिद्धान्त के खिलाफ़ की ! फ्याकि यहां जो कपड़ा बनता है वह प्रायः मोटा होता है। उसे बहुत करके गरीब आदमी ही काम में लाते हैं । अतएव उस पर कर लगाना माने गरीष मादमि पर कर लगाना है। इसके प्रतिकूलविलायत से जो कपड़ा आता है वह यहां के कपड़े की अपेक्षा विशेपे अच्छा होता है । उसे अधिक ग्रामदनी चाले लोग ही ले सकते हैं। वह एक प्रकार का विलास-द्रव्य है। इससे उस पर कर लगानी सम सरह मुनासिव है। परन्तु हिन्दुस्तान का कपड़ा बसा नहीं होता । इससे इस पर कर लगाना उचित नहीं । | ज़मीन का लगान जा गवर्नमेंट के देना पड़ता है वह भी एक प्रकार का कर है । हिन्दुस्तान कृषिप्रधान देश है। यहां क्लीं सदी ९७ नहीं जा ९० अदिमियों की जीविका किसानों से ही चलती है। हम सब को ज़मीन पर कर देना पड़ता है। एक भी आदमी उसले नहीं बचता । फिर यह कर घटता नहीं, दिनों दिन बढ़ता ही जाता है। सारांश यह किज़मीन, नमक और कपड़े पर जो कर लिया जाता है उसका असर गरीब से गरीचे यादमियेई पर पड़ता है। इन करों को भार अन्य देश पर ज़रा भी न पड़ कर कुल इसी देश की प्रजा पर पड़ता हैं । यह कह छक उचित हैं , इसे मार स्पष्ट करके समझाने की जरूरत नहीं ।