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परोक्ष कर । ३४९ अवश्य होगी । अर्थात् यातो मजदूरों को हानि पहुँचेगीं या जिनसे उन्हें मज़दूरी मिलेंगी इन लोगों की हानि होगी ! हानि से किसी तरह रक्षा न हो सकेगी । अतएव अनाज, नमक, तैल, लकड़ी, मोढ़ा कपड़ा। पीतल के बर्तन आदि निर्धाहोपयोगी चीज़ों पर कभी कर न लगाना चाहिए । ऐसे करों से देश का कभी हित नहीं होता ! पर, चिलास-द्रयों पर कर लगाने से हानि के बदले लाभ होता है । क्योंकि ऐसी चीज़ों के लिए जो रुपया खर्च किया जाता हैं वह प्रायः-अनुत्पादक होता है। इससे उनकी क़ीमत बढ़ भी जाये तो कोई अहितकारक परिणाम नहीं हो सकता । पहले तो ऐश-आराम की चीजें मोल लेकर व्यर्थ सम्पत्ति नाश करना ही मुनासिब नहीं । पर जो लोग इतने धनी हैं कि ऐसी चीजें लेकर अपनी सम्पचि का दुरुपयोग कर सकते हैं, उन्हें इन ' चीज़ों पर लगाये गये कर देने में भी कोई विशेष कष्ट नहीं हो सकता । |, ज्ञिन लोगों का काम कर लगाना है उन्हें बहुत सोच समझ कर ऐसी ही चीज़ों पर कर लगाना चाहिए जिनकी मूल्य-वृद्धि का असर कम अमदनी के अदमियों पर न पड़े। बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिन पर कर न लगना चाहिए, परन्तु इस देश में उन पर भी लगता है। परिणाम भी इसका बुरी हो रहा है। तथापि कर जैसे को तैसा बना हुआ है। यह दुःख की बात है। प्रत्यक्ष कर देखें लोगों को बहुत खलता है। ऐसे करें की रकम निश्चित करने के लिए लोगों की आमदनी की जाँच करनी पड़ती है। कर चखल करने वाले कर्मचारियों के बुरे वर्ताव के कारण लोगों का चित कलुपित हो जाता है । जिसले कर न लेना चाहिए इससे भी कभी कभी ले लिया जाता है। इन कारणों से प्रजा में असन्तोष पैदा होने का डर रहता है और प्रज्ञा को असन्तुष्ट करना जा के लिए कभी हितकर नहीं। इससे दूरदर्शी राजे और शासनकर्ता यथासम्भव प्राक्ष कर न लगा कर पक्ष ही कर अधिक लगाते हैं । | परोक्ष कर बहुधा व्यवहारोपयोगी चीज़ों पर ही लगाये जाते हैं। कपड़े पर कर, शराब पर कर, नमक पर कर, अफ़ीम पर फर'-यै सभी परोक्ष कर हैं। जो लोग ये चीजें लेकर खर्च करते हैं उनकी संख्या लाखों नहीं करोड़ है। एर प्रत्यक्ष र पर उन सव से कर नहीं वसूल किया जाता !