पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३५७

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३३८ सम्पत्ति-शास्त्र । व्यवहार करना बहुत मुश्किल काम है । यदि यह कहें कि इस नियम का व्यवहार में बहुतही कम उपयोग हो सकता है तो भी विशेष अत्युक्ति न होगी। तथापि नियम की योग्यता प्रवाधित है। सब से बराबर कर लेना चाहिए, यह बात एक ही कर का विचार करने से ध्यान में नहीं सकती । इसे सम्बन्ध में प्रजा से बसूल किये जाने वाले सारे करों का विचार करने से ध्यान में असकती है। संभव है, गरीब और अमीर दोनों को नमक पर तो बराबर कर देना पड़े, पर अमोर को विलास-द्रव्यों पर अधिक । इस से अमीरों के सब करों की रक़म गरीब आदमियों के करों की रक़म से अधिक होसकती है। अर्थात् आमदनी के लिहाज़ से अमीरों को अधिक और गरीबों को कम कर देना पड़ता है। पर परता एकही पड़ता है। (२) एडम स्मिथ का दूसरा नियम यह है कि कर की रकम निश्चित घोनी चाहिए। किस समय, किस तरह, और कितना कर देना होगा, ये बातें साफ़ साफ़ प्रजा पर प्रकट कर देनी चाहिए। यह नियम बहुत ही अच्छा है। यदि प्रजा को ठोक ठीक यद्द न मालूम होगा कि कितना कर देना है तो बड़ी गड़बड़ पैदा होगी । कर घसूल करने वाले खाना चाहेंगे तो कार का बहुत कुछ कृपया खा सकेंगे। इस से व्यर्थ प्रज्ञा-पोड़ने घढ़ेगा । यदि यह न चलाया जायगा कि किस तरह कर देना होगा-अर्थात् रुपये के रूप में देना होगा या धान्य के रूप में तो भी प्रजा को हानि और कष्ट पहुँचने का डर है । कर देने का समय भी सत्य फो मालूम रहना चाहिए समय मालुम रहने से सने लोग कर का प्रबन्ध कर रखेंगे और उसे यथासमय देने में उन्हें बहुत सुभीता होगा । " ( ३ ) तीसरा नियम एडम स्मिथ का यह है कि कर उसी समय लेना चाहिए जिस समय देने में प्रजा को सुभीती हो और उसी रीति से लेना चाहिए जिस रीति से देने में प्रज्ञा को तकलीफ़ न हो । इस नियम की यथार्थता स्पष्टद्दी है । कुसमय में कर लेने से प्रजा को बहुत तकलीफ होसकती हैं। फसिल कटने के पहले ही किसानों से लगान लेने को यदि नियम किया जाये तो उन्हें क़र्ज़ लेकर या लोटा-थाली मैच फर सरकारी लगान अदा करना पड़े। इससे बढ़ कर अन्याय और क्या होसकेर ? सरकार' का धर्म प्रजा की रक्षा करना है, उसे उजाड़ना नहीं। वह यदि प्रजा के सुभीते को देख कर कर फी रुपया