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सम्पत्ति-शास्त्र ।

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कीमत कभी कभी ६० ही रुपये उन्हें मिलती थी । बाज़ार भाव से क़ीमत का पन्द्रह बीस फ़ौ सदी कम मिलना तो कोई बात हो न थी । परिणाम यह सुपर कि सारे बँगाल का व्यापार विलायती व्यापारियों के हाथ में चल गया जब प्रज्ञा पर प्रेस सती होने लगी तव चारन हेस्टिंगज़ और हेनरी वैनिस्टार्ट से न देखा गया । उन्हों ने नवाब मीर कासिम से मिल कर यह फैसला किया कि जो माल विलायत से यहां आवे, या यहाँ से विलायत जाय, उस पर महसूल न लगे ! पर ज मलि यहीं का छौ, और पक जगह से दूसरी जगह भेजा जाय, उस पर महसूल दिया जाय ।। | यह १७६३ ईसवी को घटना है। इसे कौन न्याय-सङ्गत न कहेगा? पर कलकत्ते के अँगरेज़ी कौन्सिल के अन्य सभ्य फो थइ चाह बहुत ही नागधार मालूम हुई । कौन्सिल की फौरनही एक बैठक हुई। उसमें निश्चय हुमा कि कम्पनी के मुलाज़िम अँगरेज़ों को बङ्गाल में विना महसूल दियेही व्यापार करने का पूरा हुक़ है। हां नचान को रजिसत्ता क़बूल करने के लिए इस सिर्फ नमक पर ढाई फ्री सदी महसूल देंगे । जैसा कि पूर्वोक्त दो साहचों ने नवाब से सहमत हो कर' ९ फ़ो सदों भइसृल सत्र चीज़ों पर देना स्वीकार किया है, वह हम न दें । कौन्सिल के इस निश्चय से हेस्टिंग्ज आर वैनिटार्ट सहमत नहीं हुए; पर मैं कर पा सकते थे ? वहुमत उनके विपक्ष में था। इसकी रखवर, जत्र नवीव को पहुँची तब उसने अजिज़ आकर सभी के माल पर का सहलूळ उठा दिया । फल यह हुआ कि विदेशी और स्वदेशी बकि दोनों के लिए एक सा सुभीता होगया । जो विदेशी व्यापारियों से मद्दल न लिया जाय तो स्वदेश दयापारियों से ही लेकर येउन्हें हानि पहुंचाई जाय ? यह समझकर नवाब ने ऐसा किया और धहुत मुनासिव किया । परन्तु कलकत्ते के कौंसिल चाल नै ( पूर्वोक्त दोनों साधव को छोड़कर ) नवाई के इस काम को वहुत ही अनुचित समझा । नचाच ने इन गैरे व्यापारियों के इस निश्चय का न माना। अंत में युद्ध हुआ । चिजय-लक्ष्मी नै अंगरेज व्यापारियों ही का पक्ष लिया। वृद्ध मीर जाफ़र फिर नववी मसनद पर बिठलाया गया । कम्पनी के मुलाज़िम का व्यापार पूर्ववत् जारी रहा। यद्यपि कम्पनी के डाइरेकृों ने ऐसा करने से कई दफे मना भी किया। पर उनका हुकम कागज़ पर ही रहा । उसकी तामील न हुई–तामील होने में एक मुद्दत लग गई ।