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माल के मूल्य का विनिमय।

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प्रवन्ध कर देगा। इस तरह रुपया भेजने में डाक के महकमे का कुछ अधिक वर्थ ज़रूर होगा, पर महकम' ठहरा सरकारी ! इस से रुपया भेजने में जो बर्च अधिक पड़ेगा वह मनीआर्डर भेजने वालों से न लिया जायगा। यदि यह काम किसी कम्पनी को करना पड़ता तो वह इस अधिक खर्चे को भी रुपया भेजनेवालों से ज़रूर वसूल कर लेती 1 डाकखाने के नियमानुसार कानपुर के १०१ पये ( १०० रुपये मूल और १ रुपया मनीपर्डर का कमीइन } बिंदकी के १०० रुपये के बराबर है। इसी तरह बिंदकी के १०१ रुपये कानपुर के १०० रुपये के बराबर है। परन्तु यदि रुपया भेजने का काम गर्नमैंट के हाथ में न होकर किसी कम्पनी के हाथ में होता तो शायद फानपुर के १०२, या इस्त से भी अधिक, कृपये धिंदकी के १०० रुपयों के घरावर होते । यही नहीं किन्तु कम्पनी के गुमाइते शायद बिंदकी के ९९ ही ' रुपये देकर कानपुर के १०० रुपये चुकाने की चेष्टा करते । फ्याँकि विदफी मैं रुपया इकट्ठा करने में कृमन को अधिक यास पड़ना । इन उदाहरणों को अच्छे तरह समझ लेने से मूल्य-सम्बन्धी अन्तधिनिभथ और बहिर्विनिमय के सिद्धान्त समझने में बहुत सुभीता घोगा ।

अब अन्तर्विनिमय का एक उदाहरण लीजिए। कानपुर के रघुनाथदास व्यापारी नै चम्बई के हरिनाथदास यापारी के हाथ कुछ गेहूं बेचा। उसी समय, या दो चार दिन आगे पीछे, चम्बई के करीमभाई ने कानपुर के शिवनाथ रामप्रसाद के हाथ लोहे का कुछ सामान बेचा ! कल्पना कर लीजिए कि गेंहू और लोहे की चीज़ों का मूल्य बराबर है। इस दशा में न कानपुर के व्यापार की बम्बई रुपया भेजना पड़ेगा और न चम्बई के व्यापारी के कानपुर। बम्बई का करीमभाई कानपुर के शिवनाथ रामप्रसाद का पत्र लिखदेगा कि जा रुपया उसे पाना है वह कानपुर के रघुनाथदास को दे दिया जाय । इसी तरह कानपुर का रघुनाथदास भी बवई के हरिनाथदास को लिखेगा कि उसका रुपया उसे कानपुर न भेजकर वहाँ करीमभाई को दे दिया जाय। अर्थात् रघुनाथदास बम्बई के हरिनाथदास के हाथ गेहू बेचकर उसके ऊपर वम्बई के कमभाई के रुपया देने के लिए एक हुँडी लिखेगा। हरिनाथदास उसे स्वीकार कर लेगा । इसी तरह करीमभाई कानपुर के रघुनाथदास के रुपया देने के लिए शिवनाथ रामप्रसाद के ऊपर हुंडी लिङ्गकर उसे स्वीकार करने की प्रार्थना करेगा। इससे यह सूचित होता है, माने ये चारा व्यापारी