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सम्पतिशास्त्र


चीजें किसी और को दे. तो उससे उसके परिथम और प्रयास से प्राप्त हुई और चीज़ ले सकता है, या उससे कोई परिश्रम का काम करा सकता है। इससे यह नतीजा निकला कि जो चीजें मूल्यवान हैं, जो प्रचुर परि- माण में पड़ी हुई नहीं मिलती, जिनके प्राप्त करने में परिथम पड़ता है वही विनिमय-साध्य हैं। और चिनिमय-साध्य होनाही सम्पत्ति का प्रधान

चिनिमय-साध्यता को स्पष्ट करके समझाने की जरूरत है । कल्पना कीजिए, आपके पास दो मन गेहूँ हैं। उसके बदले, ज़रूरत होने परः, आपको धोती का एक जोड़ा मिल सकता है। इसी तरह कपड़े के बदले अनाज, गाय-बैल के बदले बाड़ा, तांच-पोतल के बदले लोहा मिल सकता है। अतएव ये सब चीजें सम्पत्ति हैं। पर यदि आप नदी या तालाब से दो चार घड़े पानी भर कर किसी चीज़ से बदला करना चाहेंगे तो कोई बदला न करेगा । पयोंकि नदी या तालाब का पानी प्रचुर परिमाण में पाया जाता है। यह सब को सहजही प्राप्त हो सकता है। उसे पाने के लिए परिश्रम और प्रयास नहीं पड़ने । अतएव ये चीजें सम्पत्ति नहीं । पर यही पानी यदि मारवार के किसी निर्जल स्थान में पहुँचाया जाय, या नहर के द्वारा सिंचाई के लिए सुलभ कर दिया जाय, थाईट, गारा आदि बनाने के लिए किसी के मांगने पर लाया जाय, ना उसे तुरन्तही सम्पत्ति का स्वरूप प्राप्त दी जायगा । क्योंकि परिश्रम ही से पदार्थों का मूल्य बढ़ता है। जब पानी के सदृश पतली चीज़ सम्पत्ति हो सकती है सब घर, द्वार, लकड़ी, फंडा, कोयला, पत्थर, वृक्ष, लता, पत्र आदि के सम्पत्ति होने में क्या सन्देह ? तुच्छ से तुच्छ चीज़ सम्पत्ति हो सकती है: हाँ, उसके बदले दुसरी चीज़ मिलनी चाहिए। इस हिसाब से कूड़ा, कचरा, राख, गोबर, हदी तककी गिनती सम्पत्ति में हो सकती है, क्योंकि उनकी खाद बनती है और खाद के दाम आते हैं।

किसी किसी की समझ में रुपया-पैसा और सोना-चांदी ही का नाम सम्पत्ति है। यह भ्रम है। सम्पत्ति का बदला करने उसका विनिमय करने में सुभीता हो, सिर्फ इतनेही के लिए रुपये पैसे की सृष्टि हुई है। पयोंकि यदि रुपया पैसा न होता तो विनिमय में बड़ा झंझट होता और