पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२८६
सम्पत्ति-शास्त्र।

________________

सम्पत्ति-शास्त्र । लाख थान के घाटे में रहा। अतएव यह समझना बहुत बड़ी भूल है कि आयात माल की अपेक्षा यात माल अधिक होना चाहिए । पूर्वोक्त उदाहरण को एक और तरह से विचार कीजिए । हिन्दुस्तान ६० लाख मन अनाज इंगलैंड के भेजता है। पर, कल्पना कोझिए कि इँगलंड को अमेरिका से बहुत अनाज मिल गया । इस से उसे हिन्दुस्तान से अनाज लेने की विशेष ज़रूरत न रही इधर हिन्दुस्तान के इंगलैंड से ६० लाख थान कपड़ी ज़रूर ही चाहिए । बिना इतने कपड़े के हिन्दुस्तान का काम ही नहीं चल सकता । अतएव उसे ६० लाख मन अनाज की अपेक्षा बहुत अधिक अनाज देना पड़ेगा । तब कहीं उसे ६० लाख थान कपड़ा इंगलैंड से मिलेगा । अब, देखिए, यद्यपि हिन्दुस्तान की यात माल अधिक हो गया तथापि उसके बदले अायात माल पहले ही का इतना रहा । यात माळ अधिक होने से उलटा हिन्दुस्तान का नुकसान हुआ । आयात माल की अपेक्षा यात माल अधिक होने से फायदा होता है, इस बात के कुछ लोग एक निराली तरह से साबित करने की कोशिश करते हैं। उनका कहना थह है कि व्यापार में ग्रेर ढोगों के जिम्मे अपना ‘पाचन' वाक्की रहना चाहिए । हिन्दुस्तान ने यदि एक करोड़ का माल इंगलैंड के दिया है। उसके बदले इंगलेंड से सिर्फ अस्सी लाग्न काही माल लेना चाहिए, बीस लाख रुपये हिन्दुस्तान के इंगलैंड के पास 'पावने' की मद में रहने चाहिए । अर्थात् इंगलैंड को हमेशा हिन्दुस्तान का ब्रटी बना चाहिए । इसमें हिन्दुस्तान का फ़ायदा है । यह क़र्ज, अन्त में इंगलैंड नद रुपये या सोने-चांदी के रूप में अदा करेगा । अर्थात् हिन्दुस्तान की सम्पत्ति में घीस लाख रुपये की वृद्धि होगी । परन्तु यह तर्कना विलकुलही निराधार और भ्रममूलक है । क्य, सो हम बतलाते हैं। पहले तो इस तर्कना से ही यह सिद्ध है कि आयात माल की अपेक्षा यात माल अधिक नहीं है। क्योंकि एक करोड़ रुपये के यात माल के बदले जब अस्सी लाख का आयात माल, और वाक़ी बीस लाख रुपये नकद या उतने का साना-चाँदी मिलेगी तब बाहर को आमदनी भी एक करोड़ की ही जायगी । अतएव यात और आयात देने मदें अराबर है। जायँगी । नकद रुपया, सेना-चाँदी था जाहिरात भी पक प्रकार का मालही है। सेना-चाँदी, रुपयो, पैसा, अशरफी प्रेरि जाहिरात ही का नाम सम्पत्ति नहीं है, व्यवहार की जितनी चीजें हैं सभी