पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विदेशी माल के भाव का तारतम्य । अपेक्षित सभी पदार्थ पदो या तैयार करने का झंझट करने लगे तो उत्पत्ति का खर्च वजाय, सब चीजें महँगी बि, भौर सारे बैंश की हानि हो । वैदेशिक व्यापार समाज की इन हानियों से रक्षा करता है। तीसरा परिच्छेद । विदेशी माल के भाव का तारतम्य । जव विनिमय किये जाने वाले पदार्थ विनिमयकारी दोनों देशों में पैदा होते हैं और उनके उत्पत्ति-खर्च को परिमाण ने देशों में तुल्य होता है। तब उनकी क़ौमत उनकी उत्पत्ति के ख़र्च के अनुसार स्थिर होती है। परन्तु । जिन दो देशों की दशा ऐसी होती है उनमें तच तक व्यापार नहीं जारी होता जो तक विनिमय-बैंग्य पदार्थों के उत्पत्ति-खर्च में थोड़ा बहुत अन्तर न ही । इस विषय का विवेचन इसके पहले परिच्छेद में किया जा चुका है। यद्यपि चिक्नेय वस्तुओं की क़ीमत साधारण तैर पर उनके उत्पादन-व्यय के परिमाण पर हो अवलयित रहती है, यद्यपि क़ीमत के निश्चय का यही मुख्य नियम हैं, तथापि विदेशी व्यापार के सम्बन्ध में यह नियम नहीं चल सेक्रेता । सूक्ष्म विचार करने से मालूम होगा कि विदेश से आने वाली चीज़ों की क़ीमत उस देश में लगे हुए उनकी तैयारी के एज़र्च के तारतम्य पर अचलम्बित नहीं रहती । किन्तु अन्य देश की जिन चीज़ों से उनका विनिमय होता है उन चीज़ों पर उस अन्य देश में जो लागत लगती है उसके तारतम्य पर अचलम्बित रहता है। कैथला निकालने में जो खर्च इँ गले में पड़ता है उसके अनुसार इसकी क़ीमत मुक़र्रर नहीं होती, हिन्दुस्तान से उसके बदले जा गेहूँ जाता है उस गैहूँ ॐ पैदा करने में जा खर्च हिन्दुस्तान में पड़ता है उसके तारतम्य पर मुक़र्रर होती है। यह बात ज़रा उलट, सीं मालूम होती है, पर है छीक । इसे एक विवेचनात्मक उदाहरण स्वारा स्पष्ट करने की ज़रूरत है। कल्पना कीजिए कि हिन्दुस्तान में हैंगलैंड से कपड़ा आता है और उसके सदले हिन्दुस्तान से अनाज जाता है। एक गरी कपड़ा इंगलैंड से लेने के लिए हिन्दुस्तान को सौ मन अनाज-देना पड़ता है। अब यदि कोई पूछे कि इस कपड़े की हिन्दुस्तान में क्या क़ीमत हुई है। आप क्या उत्तर देंगे ?