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व्यापार से लाभ।

आनो है। इससे बड़ा सुभीता होता है। जो चीज़ जहां अच्छी होती है। उसी का पैदा करके उस प्रान्त वाले और प्रान्त के भेजने हैं और फायदा उठाते हैं । अनानुष्टि आदि कारों से जिस प्रान्त को खेतो मारी जाती है उल प्रान्त में यदि मार प्रान्तों में अनाज़ न जाय तो वहां चाली के भूख मग्ने की नौबत आवे । यह पदार्थों के अदला-बदल, अर्थात व्यापार ही, की कृपा का फल है जा ऐनै कठिन समय में भी मात के मुंह से मनुष्य की रक्षा तो हैं । पृथ्वी पर अनेक देश है । उनकी भूमि उनको अहिया. उनकी लेाकरीति एक ली नहीं : सच जुदा जुदा हैं। जे चोड़े इस देश में होती हैं वे उस देश में नहीं होना, जा काम इस देश के प्राइम कर सकते हैं वह उस देश के नहीं कर सकते । पर प्रसंग पड़ने पर मनुष्यों के सब तरह की चीज़ को ज़रूर होती है। अतएव जैसे एक ही बैंश में एक प्रान्त की चीज़ों को दूसरे प्रान्त में ले जाना पड़ना है, वैसेही एक देश की चीज़ के दूसरे देश में भी ले जाना पड़ता है। इसी अदला-बदल का नाम च्यापार हैं। विना व्यापार के सभ्य आदमियों का काम नहीं चल सकता ; असभ्य का चाहे भले चल जाय । पर सभ्य र शिक्षित लोगों के सम्पर्क से अब अलभ्य जंगली भी चीज़ों का अदला-बदल करने लगे हैं। जैसे जैसे मनुष्य सभ्य मार शिक्षित होता जाता है जैसे ही जैसे उसकी ज़रूरतें बढ़ती जाती है; अतएव व्यापार की वृद्धि होती जाती है। आज तक हिन्दुस्तान की भाफ़ से घुलने वाले यंत्रों की जरूरत न थी । पर अब यह जरुरत प्रति दिन चढ़ती जाती है। रेल, बड़े बड़े पुतलीघर और छापेमाने, जा जारी है, बिना ऐसे यंघों के नहीं चल सकतं । ऐसे यंत्र बनाने के लिए लाहा. कायला और दिपजाम चाहिए। ये बाने इंगलैंड और अमेरिका आदि में यथेष्ट हैं । इससे इस तरह के यंत्र वहीं अझै बनते हैं। हिन्दुस्तान में मैं अभी नहीं बन सकते , अपय बह से लाने पड़ते हैं। इसी तरह रुई, रेशम और जूट अदि चीजें हिन्दुस्तान में असी अच्छी होती हैं, ईंगल में बंसी नहीं होती। अतएव में यहां से लंड जाती हैं। व्यापार हो की बदौलत एक देश की बीजें दूसरे देशों में जाती हैं और देने देशों के फ़ायदा पहुंचाती हैं । | किनी किसी का बयाल है कि पदार्थो के अदला-बदल, अर्थात् व्यापर, से यदि यह मान लिया जाय कि ज़रूर ही फ़ायदा होता है, ते एक का