पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
शास्त्रत्व-विचार

खेती के लिए रसायन शास्त्र का शान बहुत जरूरी है। बिना इस शास्त्र के रहस्य जाने खेती की उन्नति नहीं हो सकती। खेती का आधार अमीन है । जमीन से जो चीजें पैदा होती हैं सब सम्पत्ति के अन्तर्गत हैं। अतएव सम्पत्ति पैदा करने में जिस शास्त्र का इतना काम पड़ता है उसका ज्ञान. सम्पत्ति-शास्त्र के सिद्धान्त निश्चित करने के लिए, होनाहीं चाहिए । जमोन के लगान का विषय सम्पत्ति-शास्त्र से सम्बन्ध रखता है। पर किस ज़मीन में कितनी पैदावार हो सकती है, अथवा कौन ज़मीन किन जिन्सी के लिए अच्छी है, यह रसायन शास्त्र का विषय है। अतएव रसायन शास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार जब तक ज़मीन की उत्पादक शक्ति आदि का, ज्ञान न होगा तब तक लगान सम्बन्धी सिद्धान्त, जो सम्पत्ति-शास्त्र के 'अंश हैं, निश्चित न हो सकेंगे। इसी से सम्पत्ति-शास्त्र को रसायन शास्त्र की मदद दरकार होती है।

मनुष्य के जीवन का उद्देश सिर्फ सम्पत्ति पैदा करना ही नहीं है। जीवन को सार्थकता के जो प्रधान उद्देश हैं उनको पूरा करनेही के लिए सम्पत्ति की अपेक्षा होती है । जीवन रक्षा के लिए खाने पीने की चीज़ों की, कपड़े-लत्त को, धर-द्वार की जरूरत होती है । पर ये ज़रूरतें उन ज़रूरतों से कम महत्व की हैं जिनका सम्बन्ध सदाचार बार सुनीति से है। सदाचार का दुर्लक्ष्य करके सम्पत्ति पैदा करना बहुत बड़ा दोप है। यदि सम्पति के लोम में पाकर कोई सन्मार्ग, सदाचार और सहव्यवाहर से दूर जा पड़े तो दुनिया में उसकी वदनामी हुए बिना न रहे । और सम्भव है, उसे अनेक आपत्तियाँ भी ग्रेटनी पड़ें। ऐली सम्पत्ति किस काम को ? इसी से सम्पत्ति- शास्त्र की बातों का विचार करने में सुनीति, सुव्यवहार पार सदाचार के सिद्धान्तों से भी मदद लेनी पड़ती है।

सम्पत्ति-शास्त्र का सम्बन्ध जन-संख्या से भी है । ऊपरही ऊपर विचार करने से सम्पत्ति और आबादो बिलकुल जुदा जुदा बातें मालूम होती है। उनमें कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं जान पड़ता। पर ध्यानपूर्वक विचार करने से इन दोनों में भी सम्बन्ध पाया जाता है । मनुष्यों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जाती है । प्रावादी घटती नहीं, बढ़ती है। मनुष्यों की बाढ के साथ ही साथ व्यवहार की चीजों की जरूरत भी बढ़ती है। और इस तरह की जितनी चीजें हैं सब सम्पत्ति के अन्तर्गत है। इसके सिवा, आबादी

2