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व्यवसायियों और श्रमजीवियों के हितविरोध-नाशक उपाय।


मुस्तैदी पार ईमानदारी से करेंगे; पार फिर कभी हड़ताल करने का ख़याल भी उनको न होगा। जिन उपायों से योरप और अमेरिका घालों ने इस बात में सफलता प्राप्त की है. पार जिनके अबलम्यन की हिन्दुस्तान के व्यवसायियों को भी बड़ी जरूरत है. उनका संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जाता है। मुनाफे का वाँटा जाना । कारवाने के मालिक मार मजदूर कभी कभी आपस में यह निश्चय कर लेते हैं कि फ़ीलदी अमुक मुनाफे से जितना मुनाफा अधिक होगा बह सब, या उलका अमुक अंश, मजदूरों को बाँट दिया जायगा । इससे मजदूरों का उन्साह बढ़ जाता है। वे ब दिल लगा कर काम करते हैं और फारखाने की हर एक चीज़ और हर एक औज़ार को अपनाही समझ कर उसका दुरूपयोग नहीं करतं । इससे उनकी मेहनत अधिक उत्पादक हो जाती है पार कारखाने का खर्च भी किसी कदर कम हो जाता है । परिणाम यह हाना है कि समाप्ति की उत्पत्ति बढ़ जाती है पार पहले से अधिक मुनाफा होता है । इस दशा में मामूली मुनाफ़े से जितना मुनाफा अधिक हुआ है वह यदि मजदूरों को बाँट दिया जाय ता कारखानेदार की कोई हानि नहीं। उसे तो जितना मुनाफा मिलना चाहिए मिल गया। यह जो अधिक मुनाफ़ा हुआ है वह मज़दूरों ही की मिहनत का फल है, मालिक के पुरुषार्थ का नहीं । मालिक इसका भी कुछ अंश ले सकता है । यह बात भी मजदूर मंजूर कर सकते हैं । पर यदि सारा मुनाफ़ा मालिक ही ले जाय तो मजदूर लोग कभी सन्तुए नहीं हो सकने । मुनाफा बाँट कर मजदूरों को उत्साहित करने में कारगानेदार का भी लाभ है और मजदूरों का भी । किसी किसी का यह पयाल है कि मजदूरों को भुनाफे का हिस्सा देने से पूँजी लगानेवाले व्यवसायियों का मुनाफा कम हो जाता है । इससे उन्हें हानि पहुंचती है। यथार्थ में यह बहुत बड़ी भूल है। अपनी पूजी पर मामूली मुनाफा ले लेने के बाद जो बचे उसे पूंजीवाले यदि मजदूरों को बाँट दें तो उन्हें अपने घर से कुछ भी नहीं देना पड़ता । फिर हानि फैसो ? जो मुनाफ़ा शेप रहता है वह मजदूरों के अधिक दिल लगाकर काम करने का फल है। उसे मजदूरों को ही देना चाहिए। वह उन्हीं का हिस्सा है । उसे उन्हीं को देना न्याय्य है। इससे पूंजी बालों की हानि तो होती