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सम्पत्ति-शास्त्र ।


हैं। या अपने साथियों में से जो हड़ताल नहीं करते उनको भी हड़ताल करने के लिए मजबूर करते हैं। ई० आई० ई० रेलवे के वाबुओं ने अभी उस साल जी हड़ताल किया था उसमें उन्होंने काम पर जानेवाले अपने साथियों से बहुत हो चुरा परताव किया था। किसी किसी को मारने नहीं, मार डालने तक की धमकी दी थी। ड्राइवरों के हड़ताल में ता, सुनते हैं, एक ड्राइचर पर गोली भी चलाई गई थी। हमने काम छोड़ दिया है, तुम भी छोड़ दो. या हमने मिल कर दड़ताल करदी है, तुम हमारी जगह पर काम करने मत जाव-इस तरह की काररवाई सधथा अन्यायपूर्ण पार कानून के खिलाफ़ है । मजदूरों और श्रमजीचियों को मुनासिब तार पर हड़ताल करने का अधिकार ज़रूर है, पर दूसरों की स्वतन्त्रता-दुसरों की आज़ादी-छीन लेने का उन्हें ज़रा भी अधिकार नहीं । औरों की आजादी में खलल डालन- घाले व होते कौन है ? जो खुशी से तुम्हारा साथ दें, या खुशी से तुम्हारी जगह पर काम करने न जाये, घे वैसा कर सकते हैं। पर उनसे जबरदस्तो हड़ताल कराने का किसी को अधिकार नहीं । श्रमजीचियों को अपनी इच्छा के अनुसार काम न करने देने से यह सूचित होता है कि हड़ताल करनेवाले का जो पेशा है, उसे करने का हक सिर्फ इन्हीं को है । यह खयाल बिलकुल हो गलत है। पेसा हा उनको न कानून के रू से मिल सकता है और न किसी और ही उसूल के मुताबिक | जब पक आदमी दूसरे को अपनी इच्छा के अनुसार काम करने से रोकना शुरू करता है और उसे धमकाता है तब वह दूसरों की स्वाधीनता में हस्ताक्षेप करने का अपराधी होता है तब वह दूसरों की आजादी में मदाखिलत बजा करने का जुर्म करता है। हर आदमी को इस बात की स्वतन्त्रता है कि यह खद मेहनत करने से इन्कार कर दे। पर साथ ही इसके उसका यह भी कर्तव्य है कि जो अपनी इच्छा के अनुसार काम करने पर राजी हो उनके काम में वह जरा भी विघ्न न डाले। यदि आदमी बंकार बैटे है, और काम करने के लायक है, पार कम उजरत पर हड़ताल करनेवालों की जगह पर काम करने को राजी हैं, तो हड़ताल वालों के सिवा हर आदमी के लिए यही लाभदायक है कि वे बेकार आदमी काम पर लगा लिये जायें । अतएव हड़ताल करनेवालों को कभी दूसरों को धमकाना या काम पर जाने से न रोकना चाहिए ।