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सम्पत्ति-शास्त्र ।

के घावू लोग ने हड़ताल करके उलटा अपनीद्दी हानि करली । कारण यह हुआ कि दृढ़तापूर्वक सारी लाइन में इड़ताल न किया गया । और आपस में एकता न होने से कुछ लोग हड़ताल के समय भी काम करते रहे। हडताल के चिपय में पण्डित माधवराव सप्रे का एक लेख “सरस्वती में प्रकाशित हुआ है। उसमें वे लिखते हैं :- | ** जब किसी देश को सम्पत्ति थौड़े से पूँजी बालों के हाथ में जाती है, और अन्य लोगों के मज़दूरी से अपना निर्वाह करना पड़ता है, तब पूँजीवाले अपने व्यापार का मफ़ा स्वयं आपही लेते हैं, और जिन लोगों के परिश्रम से यह सम्पत्ति उत्पन्न की जाती है उनको पेट भर खाने की नहीं देते। ऐसी दशा में श्रम करनेवाले मजदूरों के हड़ताल करना पड़ता है। पड़बई डायसी नाम के एक लेखक ने अंगरेज़ो भा के वृहत्कौश (यन्साइक्लोपीडिया भिटानिका) में लिखा है-Strik१८ liye inclu:५७rl it litilpa ।। ii। :tective- ।", I।।।li Tutr", ॥* in Itit: 25tel, tall Tracle lisputera nitist lod ॥ii।। ।। Atlil utb (lig-3'rt! It it, ti ter;"---principle, Jay htails' ।।। the Juirl in' in tIl licl:-rils r) the hill of units- tex,' अर्थात् हड़तालों की संख्या बढ़ गई है और उनको कार्यक्षमता भी अधिक है। गई हैं। जिस नियम के अनुसार व्यापार-विषयक सर्च झगड़ों का वसफिया पहले है।ता था, उसी नियम का अवलम्य भविष्य में भी किया जायगा' । मतलब यह कि काम करनेवाले हड़ताल करेंगे और कारखानों के मल्लिक कारणों के फाटक बन्द फरें—काम करनेचालों का काम से छुड़ा देंगे । | "पश्चिमी देशों में भिन्न भिन्न व्यघसायियों की भिन्न भिन्न जातियां नहीं हैं। जी अादमी आज सुनार की काम करता है वही कल अापके चमार का काम करता हुआ देख पड़ेगा । इसी सामाजिक व्यवस्था का परिणाम, पद्ध के रूप में, परिंन्चमी देशों की आर्थिक दशा पर दिखाई देता है। अर्थात् जिस समाज में सब लोगों के हर तरह के काम करने की स्वतंत्रता है--जिस समाज के लोगों की हर तरह के यवसाय करने की आज़ादी हैं- इन लोगों को तनप्ताह कैचल पारस्परिक पर्दा (Cotmletition) मैं हीं ठहराई जाती है ।