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. सति-शास्त्र, ( पूर्वार्द्ध ) - पहली भाग। विषय-प्रवेश । -4555;--- पहला परिच्छेद । भारतवर्ष में सम्पत्ति-शास्त्र के अभाव का कारण ! ॐ हुंचे हुए महात्माओं और येगियां के छड़कर, कौन ऐसा मनुष्य " प होगा जिसे सम्पत्तिमान होने की इच्छा न हो ? जो सम्पत्ति ६.' की कुछ नहीं समझते , जिनकी दृष्टि में मिट्टी का ढेला se" और अकवरी अशरफ़ी तुल्य हैं, ऐसे लेाग, इस ज़माने में,

  • शायद लाख में कहीं एक हौं । संसार में रहकर सम्पत्ति का पचड़ा सव के पीछे लगा हुआ है। बिना थाड़ी बहुत सम्पत्ति के संसार में रह कर कालक्षेप करना बिलकुल ही असम्भव है। जो सम्पत्ति इतनी महत्त्वमयी है मार जिसकी कृपा बिना बड़े बड़े विद्वान, बड़े बड़े विज्ञानियां, बड़े बड़े पण्डितों को भी सम्पत्तिमान का आश्रय लेना पड़ता है, उसका शास्त्रीय विचार संस्कृत-साहित्य में न देख कर आश्चर्यय होता है। भारतघर्प के जिन प्राचोन ग्रन्थकारों ने गहन से भी गहन र से भी क्लिष्ट विषयां के वियेचन से भरे हुए ग्रन्थ लिख डालें उन्होंने सम्पत्ति-सम्यन्धी इस इतने बड़े महत्वपूर्ण विपय पर एक सतर तक न लिखी | आश्चर्य की बात ही है। परन्तु सम्पत्ति की महिमा भारतवर्ष के निवासियों की दृष्टि में अभी बहुत पुरानी नहीं। इस देश के तत्वदर्शी पण्डित सम्पत्ति का कोई चीज़ ही नहीं समझते थे । लक्ष्मी की उन्होंने हमेशा तुच्छ दृष्टि से देखा है। यदि एक ने उसे स्पृहणीय कहा है तो इस ३ स्याज्य ! उसे तृण्वत् भानते ही में उन्होंने