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सम्पत्ति-शास्त्र।

सिद्धान्त का प्रभाव इस देश के आदमियों पर, जातिभेद के कारण, कम पड़ता है। क्योंकि मेहतर, मोची, जुलाहे, धुनिये, खटिक आदि निंद्य व्यवसाय करने वाले लोग परम्परा से अपना हीं काम करते आते हैं। जो काम बाप करता है वही बेटा भी करता है। कोई और जाति अधिक उजरत के लोभ से मोची या जुलाहे का काम करने पर राज़ी नहीं हो सकती। इससे उन्हें स्पर्धा का बहुत कम डर रहती है। परन्तु धीरे धीरे कालचक्र फिरने लगा है। अन्य जाति वाले भी अब जूतों की दूकान और चमड़े का व्यवसाय करने लगे हैं। अतएव जो व्यवसाय निंद्य और अप्रतिष्ठाजनक माने गये हैं उनके करने वालों को होशियार हो जाना चाहिए।

(२) जिस व्यवसाय के सीखने में अधिक मेहनत और अधिक ख़र्च पड़ता है उसमें मज़दूरी भी अधिक मिलती है। अच्छे बढ़ई को रुपया बारह आने रोज़ मिलता है, पर कुली को सिर्फ़ तीन चार आने। क्योंकि बढ़ई का काम सीखने में बहुत दिन लगते हैं। यंजिनियरी, डाकृरी और विकालत की परीक्षा पास करने के लिए बहुत दिन तक पढ़ना और बहुत ख़र्च करना पड़ता है। इसी से इस व्यवसाय वालों को अधिक वेतन, अर्थात् अपने काम का अधिक बदला, मिलता है।

(३) अचिरस्थायी व्यवसायों को अपेक्षा चिरस्थायी व्यवसायों में कम उजरत मिलती है। रेल के कारखाने हमेशा जारी रहते हैं। अतएव वहाँ काम करने वाले लोहार, बढ़ई और कुली थोड़ी तनखाह पर भी ख़ुशी से काम करते हैं। परन्तु यदि कोई एक बँगला या मकान बनाता है तो उसे इन्हीं लोगों को बहुधा अधिक उजरत देनी पड़ती है। क्योंकि जो कारीगर या कुली वहाँ काम करने आते हैं वे जानते हैं कि चार छः महीने में जब यह काम ख़तम हो जायगा तब हमें और कहीं काम ढूँढ़ना पड़ेगा, और, सम्भव है, महीनों हमें बेकार बैठना पड़े। यही समझ कर वे लोग अधिक उजरत लेते हैं।

(४) विश्वास और ज़िम्मेदारी के कामों में भी अधिक वेतन देना पड़ता है। बड़े बड़े बैंकों और महाजनों की बड़ी बड़ी कोठियों के ख़जानची और मुनीम जो अधिक वेतन पाते हैं उसका यही कारण है कि यह काम बड़ी ज़िम्मेदारी का है। अतएव विश्वासपात्र आदमी के सिवा औरों को नहीं मिलता। ख़जानची का काम कुछ मुश्किल नहीं, पर ज़िम्मेदारी और विश्वासपात्रता के कारण अधिक वेतन मिलता है।