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लगान।

ले अनाज कम पैदा होता है । अनाज को कमो से उसका भाव महँगा हो जाता है । इस दशा में यदि किसी साल पानी न वरसा ता भयङ्कर दुर्भिक्ष पड़ता है और लाखों अादमी मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं । बंबई और मदरास में हर साल हजारों काश्तकारों की जमीन नीलाम होती है। बताइए, इन लोगों के बाल-वञ्चों को क्या दशा होती होगी? यह रीति ऐसी बुरा है कि रियाया की अवस्था सुधारने के लिए सरकार को विशेप कानून बनाने की जरूरत पड़ा करती है 1 तिसपर भी सरकारइ स रिवाज को वन्द नहीं करती। यदि हर साल हजारौं आदमियों के घर-द्वार उजड़ते चले जायँगे तो देश की बड़ी हो भयङ्कर दशा होगी । इससे न सरकार ही का फ़ायदा है, न रिआया ही का!

जो हानियां कास्तकारों को गैर-इस्तिमरारी बन्दोवस्त के कारण उठानी पड़ती हैं उनको दूर करने के लिए यदि वंगाल का पेसा दवामी बन्दोबस्त सब कहीं हो जाय तो बहुत अच्छा हो। इस देश के हितचिन्तक सम्पति- शास्त्रज्ञों को यही राय है; पर सरकार ऐसा नहीं करना चाहती, यह अफ़सोस की बात है।

तीसरा परिच्छेद ।
मालगुजारी।

सम्पत्ति का कुछ हिस्सा ऐसा भी है जो न जमींदार को मिलता है, न महाजन को, न कारखाने के मालिकों को, न हाथ से काम करने वाले दस्तकारों और मजदूरों वगैरह को । वह गवर्नमेंट को मिलता है । अतएव गवर्नमेंट भी हिन्दुस्तान को सम्पत्ति की हिस्सेदार है ।

मालगुजारी और महसूलों (करों) के रूप में जो सम्पन्ति सरकारी खजाने में जाती है उसके विपय में मतभेद है । सम्पत्तिशास्त्र के माताओं की दृष्टि में यह विषय विवादास्पद है। उन्हें सन्देह इस बात का है कि इस विपय को सम्पत्ति के उपभाग के प्रकरण में रखना चाहिए या सम्पत्ति के वितरण के प्रकरण में ? क्या सरकार को सम्पत्ति का पाँचवाँ हिस्सेदार समझना चाहिए, या यह समझना चाहिए कि जमीदारों, महाजनों, कार- खान के मालिक मार मजदूरों के हिस्सों में से कुछ सम्पत्ति राज्य प्रबन्ध