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लगान।
मनुष्य-संख्या की वृद्धि का असर।

जब तक अनाज मँहगा न होगा, खेती करने योग्य जमीन की मर्यादा नीचे को न उतरेगी । इसका कारण यह है कि विना अनाज महंगा हुए निकृष्ट जमीन में खेती करने से काश्तकारों को लाभ नहीं होता। आबादी बढ़ने से मनुष्य संख्या को वृद्धि होने से अनाज की मांग ज़रूरही बढ़ जाती है । और माँग बढ़ने से अनाज महंगा हुए बिना रहता नहीं। क्योंकि खप अधिक होने से उसे महंगा होनाही चाहिए। अतएव सिद्धान्तं यह निकला कि देश में पावादी बढ़ जाने से खेतो की पैदावार महँगी हो जाती है।

अनाज महंगा होने से खेती की निकट भूमि नीच को उत्तरती है--अर्थात् पहले से भी खराब ज़मीन जोती वोई जाने लगती है। ऐसा होने से ज़मीन का लगान बढ़ जाता है। बढ़नाही चाहिए। क्योंकि वैसी ज़मीन की पैदावार खेती की सबसे निकट जमीन की (जिसकी पैदावार उसके मार्च के बराबर है) पदावार से जितनी अधिक होती है उतनाही लगान लिया जाता है । अर्थात् इन दोनों प्रकार की जमीन की पैदावार के अन्तरही का नाम लगान है । यह अन्तर बढ़ा कि लगान बढ़नाही चाहिए । कल्पना कीजिए कि "क" नाम को जमीन खेती को निकृष्ट मर्यादापर है और उसकी पैदावार ३० है । उसीके पास "स्व" नाम की उपजाऊ जमीन है। उसकी पैदावार १०० है । अतएव "न" का लगान ३००-३०% ७० हुआ । अब यदि खेती करने याग्य जमीन की मर्यादा घट जाय तो निकृष्ट ज़मीन की पैदावार भी घट जायगी। मान लीजिए कि खेती की ज़मीन की मन्यादा घट जाने से पूर्वोक्त निकृष्ट ज़मोन को पैदाचार घट सर २९ होगई। इस दशा में "ख" नाम की जमीन का लगान १०-२०-८० हो जायगा। अर्थात् १० बढ़ जायगा । इससे दूसरा सिद्धान्त यह निकला कि आबादी बढ़ जाने से लगान भी बढ़ जाता है। हिन्दुस्तान में लगान जो बड़ गया है उसका यह भी पक कारण है।

हिन्दुस्तान की ज़मीन की मालिक रियाया नहीं, अँगरेजी गवर्नमेंट है। वही रियासे लगान वसूल करती है। अतएव लगान बढ़ने से गधर्नमेंट का ही फ़ायदा होता है। हाँ, बंगाले और दो एक और जगहों की जमीन के विषय में यह बात नहीं कहो जा सकती क्योंकि वहाँ की जमीन का बन्दोवस्त इस्तमरारी है।जो लगान गवर्नमेंट ने एक दफेवाध दिया है वही लेतीजाती है। अतएव वहाँ