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सम्पत्ति-शास्त्र ।

यही राय है । भला और बातों में मिलकियत का दावा यदि कोई करे तो विशेष आक्षेप की बात नहीं, पर ज़मीन को क्या कोई माँ के पेट से अपने साथ लाता है, अथवा क्या ज़मीन किसी की बनाई बनती है ? फिर भला ज़मीन पर किसी की मिलकियत कैसी ! परन्तु इस बहस की यहां ज़रूरत नहीं। क्योंकि मिलकियत का हक़ सर्वमान्य होगया है। हर आदमी अपने को अपनी सम्पत्ति का मालिक समझता है । अतपय हम यहां पर सिर्फ इस बात का विचार करेंगे कि सम्पत्ति के हिस्सेदार. कौन कौन हैं वह किन किन मादमियों में वितरित होती है ।

यह लिखा जा चुका है कि ज़मीन, मेहनत और पूँजी के बिना सम्पत्ति की उत्पत्ति नहीं हो सकती। यही तीन चीजें उसकी उत्पत्ति के कारमा हैं। अतपब उत्पन्न हुई सम्पत्ति का वितरगा भी इन्हीं तीन चीजों के मालिकों में होना चाहिए । अर्थात् उसका कुछ हिस्सा ज़मीन के मालिकों को, कुछ मेह- नत करने वालों को और कुछ पूंजी लगाने वालों को मिलना चाहिए । सम्पत्ति के यही तीन हिस्सेदार है । इसका स्पष्टीकरण दरकार है ।

इस देश में जो किसान अपने हाथ से हल जोतने हैं उनमें से अधिकांश ऐसेही हैं जिनके पास न तो निज की जमीन ही है और न पूँजी ही है । जमीन तो वे ज़मींदार से लेते हैं और पूँजी महाजन से । सिर्फ मेहनत ही उनको निज की है । सब मेहनत भी उनकी नहीं । बहुधा खेत निकाने, सींचने और काटने इत्यादि के लिए उन्हें मज़द्दर डालने पड़ते हैं ! इसी से फ़सल कटने पर जब जिन्स तैयार होती है तब वेचार किसानों के हाथ उसका बहुतही थोड़ा हिस्सा लगता है। पहले उन्हें जमींदार को जमीन का लगान देना पड़ता है, फिर जिस महाजन से कर्ज लेकर बीज प्रादि लिया था और अनाज पैदा होने तक लाया पिया था उसे सूद-सहित क़र्ज़ अदा करना पड़ता है । इसके सिवा मजदूरों की मजदूरी भी उन्हें देनी पड़ती है । मजदूरी का अधिकांश तो जिन्स तैयार होने के पहलेही दे दिया जाता है । बाकी जो कुछ रह जाता है उनके हाथ लगता है। अतएव किसानों को खेत से उत्पन्न हुई सम्पत्ति का सर्वाश भोग करने को नहीं मिलता | उनकी उत्पन्न को लुई सामग्री का- (१) कुछ अंश ज़मींदार को देना पड़ता हैं

(२) कुछ अंश महाजन को देना पड़ता है।