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सम्पत्ति-शास्त्र।

तहाँ तक कोई विघ्न-बाधा न उपस्थित होगी। क्योंकि सिका सिर्फ अदला-बदल करने का एक साधन-मात्र है। वह सम्पत्ति तैलने का काँटा है । बस, और कुछ नहीं । किसी देश में सिक्का चलाने का हक कम लिया जाता है, किसी में अधिक । किसा में ५फीसदी, किसी में १० फ़ीसदी, किसी में २० फ़ी सदी। यहाँ तक कि १००फीसदी तक भी हक़ लिया जाता है ! हक़ जितनाही ज़ियादह होता है सिक की निजकी कीमत उतनोही कम होती है। इस हिसाब से १०० की सदी का मतलब हुआ कि जिस मपय अथवा जिस सिक्क पर सरकार इतना हक लेती है उसको निजकी कीमत कुल भी नहीं होती।

कागजी मपया इसी तरह का होता है। कागजी रुपये, प्रथांत करन्सी नोटों की निज की कुछ भी कीमत नहीं। चं सिर्फ काग़ज़ के छोटे छोटे टुकड़े हैं। लेन देन में ये टुकड़े नहीं विकतै । सरकार की साग्न बिकती है। अगर सरकार नोटों को बन्द कर दे तो उन्हें रद्दी काग़ज़ के भाव भी काई न ले । क्योंकि वे इतने छोटे होते हैं कि पंसा- गियों की दुकान में पुड़िया बनाने के भी काम नहीं आ सकते । टुंडी पार चेक आदि की गिनती भी कागजी रुपये में है। कागजी रुपये से सरकार का बड़ा काम होता है । जितने के नोट गवर्नमेंट ने चलाये हैं मानों उतनाही रुपया गवर्नमेंट ने बचा लिया है । कल्पना कीजिए कि आपके पास सौ रुपये का एक कित्ता नोट है। अब यदि या नाट न बनाया गया होता तो गवर्नमेंट को सौ रुपये ढालने पड़ते और उनमें फी रुपया १४ आने ८ पाई चाँदी डालनी पड़ती। यह उसे नहीं करना पड़ा। इसका अर्थ हुअा कि उसने एक कागज का टुकड़ा छाप कर अपना हक पूरा सौ फी सदी लेलिया । इस देश में जो करन्सी नोट जारी हैं वे अँगरेज़ी गवर्नमेंट के चलाये हुए हैं और ५.१०,२०, ५०, १००, ५००, १००० और १००० रुपये के हैं। उन पर लिखा रहता है कि यह नोट इस हाते का है और इतने का है। जो नोट जिस हाते का है उस हाते के किसी सरकारी ग्यजाने में वह भुन सकता है। अन्यत्र भी वह इस देश में भुनाया जा सकता है। चाहे जिसके कबजे में नोट हो, खज़ाने से उसके रुपये फ़ौरन मिल जाते हैं। हर नोट पर लिखा रहता है कि माँगने पर इसकी रकम देदो जायगी। पेसा ही होता भी है। इसीसे नोट यद्यपि कागज के टुकड़े हैं और खुद कुछ भी कीमत नहीं रखते, तथापि गवर्नमेंट की साख विकती है। लोगों इस बात का हद वास रहता