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रुपये की कीमत।

बराबर होती है। उन्हें गला कर जो चाहे धातु के दामों बेच सकता है। कल्पना कीजिए कि चीन में चाँदी का जो सिक्का जारी है वह दस पाने का है और उसमें चांदी भी दस ही आने की है। इस दशा में यदि आपको चाँदी दरकार है तो आप दस आना फी सिके के हिसाब से चीन के सिक्के खुशी से ले लेंगे। पर चीनवाले आपका रुपया सेलह आने को न लेंगे क्योंकि उसमें साढ़े चौदह हो पाने की चाँदी है ।

जिस देश में सोने-चाँदों का परिमाण बढ़ जाता है, अर्थात् ये धातुएँ जरूरत से अधिक हो जाती हैं, उस देश में जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, उनकी क़दर भी कम हो जाती है । इस दशा में सिक्कों को भी क़दर कम हो जाती है, क्योंकि सिके भी तो इन्ही धातुओं के बनते हैं। इसी नियम के अनुसार जब सोना-चांदी कम हो जाती है तब उनको कदर बढ़ने से सिक्कों की भी क़दर बढ़ जाती है । जो चील बहुत होती है उसकी कदर कम और जो थोड़ी होती है उसकी क़दर अधिक होना एक ऐसी बात है जो हर रोज़ हम अपनो पांखों देखते हैं । सिक्कों को कदर का कम-ज्यादह होना भी इसी नियम पर अवलम्बित रहता है।

कल्पना कीजिए कि किसी मुल्क में बहुत व्यापार होता है; पर उस यापार के चलाने के लिए जितना रुपया दरकार है उतना नहीं है। इस दशा में रुपये को कदर जरूर बढ़ जायगी । अथवा यो कहिए कि और चीजों को कीमत कम हो जायगी और व्यापारियों के कारोबार में बाधा आयेगी । अब, यदि, जो रूपया देश में है वह, किसी तरह, बड़ी तेज़ी से एक हाथ से दूसरे हाथ में बाय--उसके अदला-बदल में देरी न हो-त सारा कारोबार बिना विघ्न-बाधा के चला जायमा और अधिक रुपये ढाले जाने की ज़रूरत न होगी। क्योंकि इस अवस्था में सम्भव है एक सिक्का दस दफे काम आने । अर्थात् वह उतना हो काम दे जितना कि, देश में अधिक रुपया होने की दशा में, दस सिकों से होता । ऐसे देशों में वाणिज्य-व्यवसाय के काम तब तक आसानी और सुभीत से न हो सकेंगे जब तक अधिक रुपया न हाला जायगा, या फुर्ती के साथ रुपये के हस्तान्तर होने की कोई तदबीर न निकाली जायगी, या नकद रुपया दिये बिना लेन-देन कर सकने के लिए व्यापारियों और व्यवसायियों को साख न बढ़ेगी। रुपये ले जितना ही अधिक काम लिया जायगा उतनी ही माना उसकी संख्या बढ़ जायगी । और उसकी संख्या का