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पदार्थों की कीमत ।

यदि कोई आदमी की गाड़ी ढाई मन अनाज के हिसाब से २५ गाड़ियाँ लेनेको तैयार हो, और कोई फूस बेचनेवाला इससे कम कीमत पर फूल इकट्ठा करने पर राज़ी न हो, तो यही कीमत फूस की निश्चित हो जायगी। यदि इस २५ गाड़ी फूस लेनेवाने को फ्री गाड़ी सपा दो मन अनाज के हिसाब से फूस मिले, तो शायद यह २५ की जगह ३० गाड़ी एरीद ले। यदि ऐसा हो ना फ़ी गाड़ी सवा दो मन ही फूस की कीमत ठहर जायगी। पर हाँ खर्च का हिसाव करना होगा ! एक गाड़ी फूस इकट्ठा करके बाज़ार में लाने तक जो वर्च पड़ा होगा उससे यह सवा दो मन अनाज यदि कम होगा तो सौदा न पटेगा । अर्थात् स्वप और संग्रह का समीकरण होने में उत्पादन-व्यय, अर्थात् उत्पत्ति के खर्च, का भी असर पड़ता है।

उत्पादन-व्यय।

किसी चीज़ को उत्पत्ति का प्रारम्भ होने से लेकर, नैयार होने के बाद, उसके विकने तक, जितना खर्च पड़ता है उसका नाम उत्पादन व्यय है। इसमें मजदूरों की मज़दूरो, कल औज़ार आदि की क़ीमत, निगरानी और ज़िम्मेदारी आदि का मर्च, और महाजन के रुपये या अपनी पूँजी का व्याज शामिल समझना चाहिए । कल्पना कीजिए कि आपको गेहूँ पैदा करना है। तो स्खेत जोतना, बीज बोना, सींचना, निकाना, निगरानी करना, काटना, मांडना और गेहूँ तैयार होने पर उसे लाकर बज़ार में वेचना-इन सब वातों में जो खर्च पड़ेगा उसकी गिनती उत्पादन-व्यय में होगी। बिना मेह- नत के ये काम नहीं हो सकते और मेहनत करनेवालों को मज़दूरी देनी पड़ती है। अतएव मज़दूरी की मद में जो वर्च पड़ेगा वह उत्पादन-व्यय समझा जायगा । इसके सिवा हल, बैल और चरले मोल लेने, कुवा खोदने, खलिहान में रात को रहने के लिए छप्पर डालो में भी खर्च पड़ेगा। यही नहीं, किन्तु गेहुँ तैयार होने तक, मेहनत के दिनों में खाने पीने में जो खर्च होगा, वह भो उत्पादन ध्यय ही गिना जायगा। विचार करने से मालूम होगा कि इस खर्च के दा विभाग हो सकते हैं । एक मजदूरी दूसरी पूँजी । पूँजी पर जो मुनाफ़ा या घ्याज देना पड़ता है वह और मजदूरी, इन दोनों का समा- वेश उत्पादन-व्यय में होता है। पदार्थो की कीमत इन बातों का ख़याल रख कर निश्चित होती है।