पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
समालोचना-समुच्चय

ख़ुशी की बात है, श्री स्वामी विश्वेश्वरानन्द और नित्यानन्द जी ने इस आयास-साध्य और विद्वत्ता-सापेक्ष काम को हाथ में लिया है। इस कार्य के महत्व को अच्छी तरह समझ कर महाराजा गायकवाड़ ने प्रवेक्ति स्वामिद्वय का सहायक होना स्वीकार किया है। कोश का काम आरम्भ हो गया है। इस कोश के निर्माण में नीचे लिखी हुई प्रणाली से काम लिया जायगा―

(१) वेदरूपी समुद्र को मथ कर आख्यात, नाम, उपसर्ग, निपात आदि सारे शब्द रूपी रत्न, अकारादि क्रम से, एकत्र किये जायँगे। साथ ही उनकी व्याकरण-सम्मत उपपत्ति भी दी जायगी।

(२) वैदिक व्याकरण के अनुसार प्रत्येक शब्द का अर्थ सरल संस्कृत में देकर यथासम्भव वैदिक वाक्यावतरण द्वारा उसका स्पष्टीकरण भी किया जायगा।

(३) भारतवर्ष, योरप, अमेरिका और अन्यान्य देशों के विद्वानों ने वैदिक शब्दों के जो जो अर्थ किये हैं उन सब का भी उल्लेख रहेगा।

(४) भिन्न भिन्न धर्मावलम्बियों और भिन्न भिन्न सम्प्रदाय-वालों ने जो अर्थ किये हैं उन अर्थों का भी निदर्शन होगा।

(५) भिन्न भिन्न अर्थों की योग्यता अथवा अयोग्यता का तारतम्य दिखला कर जिस अर्थ की पोषकता वैदिक निघण्टु, उपनिषद् और ब्राह्मण आदि ग्रन्थों से होती होगी वही अर्थ ठीक समझा जायगा।

(६) इसके सिवा धार्म्मिक, सामाजिक, तथा भौतिक दृष्टि से शब्दों का जो अर्थ हो सकता होगा उसका भी उल्लेख किया जायगा ।