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वैदिक कोष

वैदिक कोष

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वेदों की भाषा बहुत प्राचीन होने के कारण अत्यन्त जटिल और दुरूह है। उसका व्याकरण ही जुदा है। जिन्होंने उसे अच्छी तरह पढ़ा है और जी लगाकर वेदों का अध्ययन और मनन किया है वही, बिना भाष्य की सहायता के वैदिक मन्त्रों और गाथाओं का अर्थ समझने और समझाने में समर्थ हो सकते हैं। वैदिक शब्दों और पदों का यथार्थ अर्थ जानने में बड़े बड़े धुरन्धर पण्डितों तक की बुद्धि चक्कर खाने लगती है। इस कठिनाई के होते हुए भी वेदों का मतलब समझने की बड़ी आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूर्ण करने का आज तक कोई उत्तम साधन नहीं। कोई पुस्तक आज तक ऐसी नहीं बनी जिसकी सहायता से थोड़ा पढ़े लिखे लोग भी वैदिक शब्दों का अर्थ जान सकें। बड़े बड़े पुरातत्ववेत्ताओं और भाषा-शास्त्र-विशारदों में बहुधा विवाद हुआ करता है कि अमुक वैदिक शब्द का यह नहीं, यह अर्थ है; अमुक शब्द वेदों में इतनी दफे अमुक अर्थ में आया है। अमुक शब्द अमुक भाष्यकार या निघण्टुकार ने अमुक अर्थ का बोधक माना है। इस तरह के विवादों में बहुत समय नष्ट जाता है और बहुत परिश्रम भी पड़ता है। इससे बचने का एकमात्र उपाय यह है कि वैदिक शब्दों का एक वृहत्कोश तैयार किया जाय और उसमें सारे वैदिक शब्दों और पदों का सेादाहरण अर्थ लिख कर भिन्न भिन्न भाष्यकारों के किये हुए अर्थों का भी निदर्शन किया जाय। इससे वेदाध्ययन में बहुत सहायता हो सकती है और अनेक दुरधिगम्य बातों का बोध भी हो सकता है।