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समालोचना-समुच्चय

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इस अतीव उपादेय पुस्तक की एक एक कापी प्रत्येक पुस्तकालय में रक्खी जानी चाहिए। जो मोल ले सकते हैं उन्हें भी इसे मँगा कर पढ़ना और अपने संग्रह में रखना चाहिए। जो इसे अभी नहीं मँगा सकते, तथापि जो अपनी मातृ-भाषा के प्रेमी और अपनी मातृ-भूमि के भक्त हैं, उन्हें भी हर महीने थोड़ा थोड़ा अर्थ-संग्रह करके, वर्ष छः महीने बाद, इसकी एक कापी जरूर प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।

[अक्टोबर १९२४]
 

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