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पृथिवी-प्रदक्षिणा


नाम तक अँगरेज़ी में नहीं लिखते। हवाई-द्वीप का ज्वालामुखी पर्वत देखने आप गये तो वहीं, पास ही, एक होटल में ठहरे। वहाँ से रवाना होते वक्त होटलवाले ने आपके सन्मुख एक किताब रख दी और कहा कि यहाँ ठहरने में आपको जो कुछ आराम या तकलीफ़ हुई हो उसका उल्लेख इस किताब में कर दीजिए। इस घटना के सम्बन्ध में आप लिखते हैं―

“मैंने कलम उठा अपनी गँवारी देशी भाषा व असभ्य देवनागरी अक्षरों में निम्नलिखित छोटा सा विचार* लिख दिया। हमारे साहब हिन्दू लोग हँसेंगे कि यह अजब उल्लू है कि हवाई-द्वीप में भी हिन्दी में लिखता है। भला इसे पढ़ेगा कौन? किन्तु उन्हें अलमोड़ा, बदरिकाश्रम इत्यादि या अन्य किसी जगह ही सही, योरप-अमेरिका-निवासियों को अंगरेज़ी, जर्मन, फरासीसी भाषाओं में लिखते देख हँसी नहीं आती, उलटे उनकी नक़ल कर वे स्वयं अंगरेज़ी में लिखने लग जाते हैं। इसी का नाम है पराधीनता कीछाप"-पृष्ठ १५६

गुप्त जी, माफ कीजिए, यहाँ पर आपके शब्द-चित्र में कुछ कसर रह गई है। सरकार, यह वह पुण्यभूमि है जहाँ होटलों, स्कूलों, यतीमख़ानों आदि की परिदर्शन-पुस्तकों ही में यहाँ के पावन-चरित पुण्यात्मा अपना वक्तव्य अंगरेज़ी में नहीं प्रकट करते। यहाँ तो बाप बेटे को, चचा भतीजे को, भाई भाई तक को भी पत्र-द्वारा अपने विशद विचार अंगरेज़ी में व्यक्त करता है। ऐसा अस्वाभाविक दृश्य, इस भू-मण्डल में, अभागे भारत के सिवा किसी और देश में देखने को नहीं मिल सकता। यह अद्भुत दृश्य देवों और दानवों के भी देखने योग्य है। अतएव जो विशेषण


*इस विचार की नक़ल हमने नहीं दी।

स० स०-६