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समालोचना-समुच्चय

शाके भोगिशशीषुभूपरिमिते संवत्सरे दुर्मुखे
मासे चाश्वयुजे सितप्रतिपदि स्थाने मयूराचले।
श्रीमल्लक्ष्मण पण्डितोदितप्रथामाकर्ण्य रुद्रः कविः
श्रीनारायणशाहकीर्तिरसिकं काव्यं व्यधान्निर्मन्तम्॥
अपने विषय में आप ने लिखा है—
आसीत्कोऽपि महीमहेन्द्रमुकुटालङ्कारहीरावली
तेजः पुञ्जनितान्तरञ्जितपदः श्राकेशवाख्यो बुधः।
विद्वन्मण्डलमण्डनं समभवत्तस्मादनन्ताभिध-
स्तत्पुत्री जगदम्बिकांघ्रिकमलद्वन्द्वार्चनाप्राप्तधीः॥
राष्ट्रौढक्षितिपालवंशमुकुटालंकारचूडामणि-
श्रीनारायणशाहजीवनविधेः सत्कीर्तिमुक्तावलीम्।
विद्वत्कुण्डलभूषणानि विशदश्लोकैरगुम्फदुण—
स्फारैः पंडितमण्डलाम्बुजरविः श्रीरुद्रनामा कविः॥

इससे पाठक देखेंगे कि इस कवि ने नैषध-चरितकार श्रीहर्ष के मार्ग का अनुसरण किया है। जिस प्रकार श्री-हर्ष ने अपने माता-पिता का नाम दिया है उसी तरह इसने भी अपने पिता पितामह का नाम दिया है। श्रीहर्ष ने लिखा है कि मुझे चिन्तामणि-मन्त्र के प्रभाव से कवित्वशक्ति प्राप्त हुई है। रुद्र-कवि का कहना है कि जगदम्बिका का पादपद्म-सेवा से मुझे बुद्धि को प्राप्ति हुई है। यह भी सम्भव है कि रुद्र कवि की माता का नाम जगदम्बिका रहा हो। श्रीहर्ष की उक्ति है—

श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं।
श्रीहरि: सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी चयम्॥

रुद्र ने श्री-हर्ष के "मुकुटालङ्कारहरि:" पद को प्रायः ज्यों का त्यों उठा कर ऊपर के श्लोक में रख दिया है। इसके सिवा श्रीहर्ष