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समालोचना-समुच्चय

(६ ) हिन्दू-धर्मशास्त्र की ७ जिल्दों में स्मृतियों के अनुवाद छपे हैं।

(७) पाटन की हस्त-लिखित २४ प्राचीन पुस्तकों के अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं।

इसी तरह महाराष्ट्र-ग्रन्थमाला, क्रीड़ा-माला और पाक-शास्त्र आदि के द्वारा भी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। इसके सिवा और भी कितनी ही पुस्तकें अलग अलग भी प्रकाशित हुई हैं। एक शिक्षा-प्रेमी और प्रजावत्सल राजा जब इतना काम कर सकता है तब यदि दस पाँच राजे ऐसा ही उद्योग करें तो भारत में कितना ज्ञान-विस्तार हो जाय, यह बताने की ज़रूरत नहीं। राजपूताने, मध्यभारत, पञ्जाब, बिहार आदि में कितने ही राजे महाराजे हैं। पर किसी का ध्यान इस तरफ नहीं। यदि हमारे प्रान्त के दो चार तअल्लुक़ेदार―अलग अलग न सही―मिल कर भी साल में दो ही चार हज़ार रुपये खर्च करें तो हिन्दी का बहुत प्रचार हो―हिन्दी की बहुत सी नई नई पुस्तकें निकलें, और इस प्रबन्ध से सर्व-साधारण को बहुत कुछ ज्ञान-वृद्धि हो। पर उनकी प्रवृत्ति ही इस ओर नहीं। मेलों तमाशों में वे हजारों ख़र्च कर डालेंगे; मतलब से ज़ियादह हाथी, घोड़, फिटन और मोटरकार ख़रीद लेंगे; दावतों में हज़ारों रुपया फँक तापेंगे। पर विद्या-वृद्धि के लिए कुछ न ख़र्च करेंगे। यह हाल सभी का नहीं। कुछ पृथ्वी-पति ऐसे भी हैं जो समय पर ऐसे काम के लिए भी कुछ दे डालते हैं। पर उन की संख्या बहुत ही थोड़ी है। अस्तु।

अब महाराजा बड़ौदा ने एक और भी बड़ी ही महत्व-पूर्ण पुस्तक-माला का प्रकाशन प्रारम्भ कराया है। उसके लिए उन्होंने बहुत सा रुपया मंज़ूर किया है। पाटन में जैनों का जो प्राचीन