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समालोचना-समुच्चय


बहुत कम हुआ है और रामगिरि, अजन्ता, वाढा, सितानवासल, एलोरा को छोड़ कर मध्यकालीन चित्र-सामग्री अभी तक अप्राप्य है।

मुग़ल-बादशाहों के―विशेष करके जहाँगीर के―ज़माने में भारतीय चित्रकला पर उनके समानधर्म्मा चित्रकारों का प्रभाव पड़ा। इस कारण उसकी गति कुछ बदल गई। तथापि वे लोग भारतीय चित्रकारों से भी काम लेते रहे। ये चित्रकार ईरानी चित्रकला से प्रभावान्वित तो हुए, पर इन्होंने जो चित्र अपने मन से बनाये उनमें इन्होंने अपनी पैत्रिक कला के तत्व की पूर्ववत् यथासम्भव रक्षा की। शाही समय के चित्र अब भी, बहुत बड़ी संख्या में, पाये जाते हैं।

अब तक अपने भारत की प्राचीन चित्रकला के नमूने देखने को एकत्र प्राप्य न थे। हाँ, पुरानी सचित्र पुस्तकों में अब भी बहुत से चित्र देखे जाते हैं। परन्तु वे सभी उत्कृष्ट नहीं। डाक्टर कुमारस्वामी ने कुछ चित्र, बहुत समय हुआ, एक साथ निकाले थे। तथापि ये डाक्टर साहब भारतीय नहीं, सिंहली हैं। कुछ कलावेत्तात्रों का यह भी ख़याल है कि मूर्ति-निर्म्माण-विद्या के वे चाहे भले ही बहुत बड़े ज्ञाता या पारदर्शी हों, पर चित्रकला के वे उतने अच्छे ज्ञाता नहीं। कुछ भी हो, भारत के सौभाग्य से, अब एक भारतीय ही सज्जन ने अपने चित्रकलावेत्ता होने का पूरा प्रमाण देने की कृपा की है। आपका नाम है नानालाल चमनलाल मेहता (N. C. Mehta) आई० सी० एस०। आप सिविलियन (Civilian) हैं और शायद इसी प्रान्त के प्रतापगढ़ में डेपुटी कमिश्नर हैं। आपने अभी, कुछ ही समय हुआ, एक पुस्तक अँगरेज़ी में लिख कर प्रकाशित की है। उसके प्रकाशक हैं―बम्बई के तारापुरवाला ऐंड सन्स। पुस्तक बहुत बड़ी है।