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भारतीय चित्रकला
भारतीय चित्रकला
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कविता, सङ्गीत, चित्रकला और मूर्तिनिर्माण-विद्या की गिनती ललित- कलाओं में है। असभ्य, अशिक्षित और असंस्कृत देशों में इन कलाओं का उत्थान नहीं होता। जिन कृतविद्य और शिक्षा-सम्पन्न देशों के निवासियों के हृदय, मानवीय विकारों के अनुभव से, संस्कृत और सुपरिमार्जित हो जाते हैं वही इन कलाओं के निर्म्माण की ओर आकृष्ट होते और वही इनसे परमानन्द की प्राप्ति भी कर सकते हैं। परन्तु ऐसे देशों में एक प्रकार क़े और भी सौभाग्यशाली जन जन्म पाते हैं जो इन कलाओं के ज्ञाताओं और निर्माणकर्ताओं से भी अधिक सरसहृदय होते हैं। वे इन कलाविदों की कृतियों से कभी कभी उस अलौकिक आनन्द की प्राप्ति करते हैं जो उनकी सृष्टि करनेवालों को भी नसीब नहीं। वे व्यक्ति कलावेत्ताओं के द्वारा निर्मित कलाओं के नमूनों में ऐसी ऐसी बारीकियाँ खोज निकालते हैं जिनका अनुभव स्वयं निर्म्माताओं को भी नहीं होता, इतर जनों की तो बात ही नहीं। मनुष्य-हृदय के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तथा गुप्त भावों को हृदयङ्गम करने-वाले ये पिछले भव्य भावुक धन्य हैं। इनके संवेद्य भावों का यथेष्ठ अभिनन्दन इन्हीं के समकक्ष अन्य सहृदय सज्जन कर सकते हैं, दूसरे नहीं।

चित्रकारों और कवियों के कार्य्य में विलक्षण साम्य या साधर्म्य होता है। कवि अपने शब्दचित्र द्वारा प्रकृति के प्रसार और मानवी हृदयों के विकार का प्रदर्शन करता है और चित्रकार उन्हीं बातों का प्रदर्शन अपने चित्रपट के द्वारा करता है। दोनों में भेद केवल इतना ही होता है कि कवि को कृति दूसरों के लिए श्रोतृगम्य होंती