पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/३

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निवेदन


इस संग्रह में निवेदनकर्त्ता की जो समालोचनायें प्रकाशित हैं वे सब, समय समय पर, "सरस्वती" में निकल चुकी हैं। जो समालोचना जिस समय निकली थी उसका उल्लेख उसी के नीचे कर दिया गया है। आलोचनायें अधिकतर हिन्दी ही की पुस्तकों की हैं। पर कुछ संस्कृत-पुस्तकों और उनके अंश-विशेषों की भी हैं। दो एक आलोचनाये अन्य भाषाओं की पुस्तकों की भी हैं। अधिकांश आलोचनायें ऐसी ही पुस्तकों की हैं जो लेखकों को समालोचना ही के लिए प्राप्त हुई थीं। हाँ, कई आलोचनायें ऐसी भी हैं जिनके प्रकाशन के लिए उससे किसी ने प्रेरणा न की थी, उन्हें उसने स्वयमेव प्रेरित होकर लिखा और प्रकाशित किया था।

जो लेख इसमें संग्रहित हैं उनमें से कई बहुत पुराने हैं। उनका प्रथम-प्रकाशन हुए बीस-बीस पच्चीस-पच्चीस वर्ष हो चुके। तब से हिन्दी-साहित्य बहुत कुछ उन्नत हो गया है। अतएव इन लेखों से तत्कालीन समालोचना-साहित्य की तुलना वर्तमानकालीन साहित्य से करने में बहुत कुछ सुभीता हो सकता है। बात यह है कि साहित्य की इस शाखा की ओर हिन्दी-लेखकों का ध्यान इधर कुछ ही समय से अधिक गया है। अब तो बड़े बड़े विद्वान् और पदवीधर पण्डित अपने पाण्डित्यपूर्ण लेखों से इस शाखा की समुन्नति कर रहे हैं। पर एक समय था जब हिन्दी-साहित्य में इस विषय के लेखों का प्रायः अभाव ही था। यदि किसी