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समालोचना-समुच्चय
आप लोग पाँच वर्षों से हिन्दी-साहित्य का एक बहुत बड़ा―कोई एक हज़ार पृष्ठ का―इतिहास लिख रहे हैं। यह इतिहास समाप्तप्राय है। इसमें केवल कुछ आधुनिक कवियों और लेखकों पर निबन्ध लिखना बाक़ी है। इसी से, अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार, हमने, संक्षेप में, नवरत्न को त्रुटियाँ दिखाने का साहस किया है। लेखकों ने यदि हिन्दी का इतिहास लिखकर प्रकाशित करने की सूचना न दी होती तो हम इतनी लम्बी समालोचना लिखने की आवश्यकता भी न समझते। अब यदि इस लेख में कुछ भी सार हो तो उसे ग्रहण करके लेखक-महोदय हिन्दी साहित्य के इतिहास को निर्दोष बनाने की चेष्टा करें। और, यदि, न हो तो जाने दें।
[ जनवरी-फरवरी १९१२ ]
Printed by Ramzam Ali shah,at the National press, Allahabad