पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२५०

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२४४
समालोचना-समुच्चय

ये उनकी वन-यात्रा माङ्गलिकसमझते थे—पृष्ठ ४३
परन्तु वह नहीं बोले—पृष्ठ ७३
वे.......बनाने लगे थे—पृष्ठ १४४

बिहारी सतसई अपनी टीका समेत छपवाई थी—पृष्ठ २२०
ललितललाम का टीका गुलाब कवि द्वारा बनवाया—पृष्ठ ३०८

दोहाओं द्वारा बातचीत होना कहा गया है—पृष्ठ ३
दोहों में क्रमबद्ध रामायण कही गई है—पृष्ठ १९

सवैया कहे हैं—पृष्ठ ३१२
सवैयाओं से देवजी का स्मर्ण आता है—पृष्ठ ३१३

कहीं 'काव्य' शब्द स्त्रीलिङ्ग, कहीं पुँलिङ्ग; कहीं 'दोहा' और 'सवैया' पुँलिङ्ग, कहीं स्त्रीलिङ्ग; कहीं 'यह' और 'वह' एकवचन, कहीं बहुवचन। इस प्रकार के न मालूम कितने उदाहरण इस पुस्तक में विद्यमान हैं।

सामासिक शब्द कहीं मिलाकर लिखे गये हैं, कहीं अलग अलग। किसी एक नियम की पाबन्दी नहीं की गई। 'कविता काल,' 'हिन्दी रचना,' 'भक्ति विचार,' 'चिर विमर्दित,' और 'हिन्दू राज्य' आदि सैकड़ों सामासिक शब्दों के बीच में स्पेस छोड़ दिया गया है।

'ब' और 'व' की तो बड़ी ही दुर्दशा हुई है। 'व्रजभाषा,' 'वल्लभाचार्य्य, 'विरहु' 'विषय,' 'वध' और 'वियोग'