(१) 'बड़े बड़े कवियों के कुल गोत्रादि के विषय भी सन्देह बना रहता है'। पृष्ठ २१९।
(२) 'वैसा ही सन्देह इस महाकवि के विषय भी उपस्थित है'। पृष्ठ २१९।
(३) 'अपने विषय भी इन्होंने केवल एक दोहा लिख कर सन्तोष किया है। पृष्ठ २१९।
(४) 'इनके विषय एक तीसरा दोहा भी प्रसिद्ध है। पृष्ठ २१९।
ये चारों उदाहरण एक ही पृष्ठ से लिये गये हैं। इन प्रयोगों की इस पुस्तक में बेतरह भरमार है। एक ही शब्द और एक ही मुहावरे को बार बार लिखते लोग सङ्कोच करते हैं। ऐसा करना वे बुरा भी समझते हैं। परन्तु लेखक-महोदयों ने इसकी कुछ परवा नहीं की। वे शायद ऐसा ही प्रयोग सही समझते हों। पर यदि यह बात है तो कई जगह उन्होंने 'विषय' के आगे ' में' क्यों लिखा, यथा:---
'रामायणों के विषय में भी क्षेपक होने का पूरा सन्देह है'--पृष्ठ १९
जान पड़ता है यद दशा या दुर्दशा भी लेखक-महाशयों की शिरकत का ही नतीजा है।
'काल' और 'समय' शब्द के साथ 'में' के प्रयोग-विषय में भी आप लोगों ने मनमानी की है। कहीं 'में' लिख दिया है, कहीं नहीं लिखा---
(१)'मुबारक भी इस काल में अच्छे कवि हो गये हैं'। भू० पृष्ठ २२
(२) 'अकबर बादशाह भी इसी काल में हुए हैं' । भू० पृष्ठ २२