दूषित भाषा का यह बहुत ही बुरा उदाहरण है। इस विषय के अधिक उदाहरण देकर हम लेख नहीं बढ़ाना चाहते। इतने ही उदाहरण देखकर स्थालीपुलाक न्याय से पाठक समझ सकेंगे कि इसकी भाषा सदोष है या निर्दोष और सदोष है तो कितनी।
वाक्य और वाक्यांश-शेष
जान पड़ता है कि न तो इस पुस्तक को प्रेस में देने के पहले ही किसी ने ध्यान से पढ़कर देखा, और न पीछे प्रूफों ही का सावधानी से संशोधन किया। तीन तीन विद्वान् जिस पुस्तक के कर्ता हों उसकी ऐसी दशा हुई देख दुःख होता है। मामूली मुहावरों तक को लेखकों ने कहीं कहीं पर बिगाड़ दिया है। इस पुस्तक में सैकड़ों अशुद्धियाँ ऐसी हैं जो थोड़ी ही सावधानता रखने से दूर हो सकती थीं। दस पाँच उदाहरण लीजिए---
( १ ) 'राजसभा की गाम्भीर्य' ( पृष्ठ ५८ )
( २ ) 'शिखनखों की बाहुल्य' ( पृष्ठ ६० )
( ३ ) 'रुद्राष्टक बनाई है' ( पृष्ठ ६९)
( ४ ) 'मनुष्यों के उपयोगी बातें' ( पृष्ठ ६८ )
( ५ ) 'बड़े ही उत्तम रीति से वर्णित किये गये हैं' ( पृष्ठ १३२ )
( ६ ) 'इनकी चातुर्य' ( पृष्ठ २३७ )
लेखकों ने 'गाम्भीर्य,' बाहुल्य,' 'चातुर्य,' और 'काव्य,' आदि शब्दों को, न मालूम किस आधार पर, स्त्री-लिङ्ग माना है।
( ७ ) 'जन्म पर्यन्त में सात सै दोहे बनाकर रख दिये' (पृष्ठ २२५ )
( ८ ) तब तक भला उन बूँदों भेंट कहाँ हो सकती है' ( पृष्ठ २२५ )