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हिन्दी नवरत्न

लेखकों ने तुलसीदास की कविता में जिन दोषों की उद्भाधना की है उनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जाता है--

( १ ) कवितावली के कुछ कबित्तों में छन्दोभङ्ग है---पृष्ठ २२।

( २ ) सुन्दर-काण्ड में हनूमान् ने कई काम बड़ी ही बहादुरी के किये। परन्तु, यह कह कर कि---'उमा न कछु कपि की अधिकाई---प्रभु प्रताप जो कालहिं खाई'---तुलसीदास उनके सारे यश के गाहक बन बैठे। पृष्ठ ५७।

( ३ ) सुन्दर-काण्ड में मन्दोदरी के सामने रावण का सीता से यह कहना अनुचित हुआ कि यदि–--'तू एक बार मेरी ओर देख ले तो मन्दोदरी आदि रानी ( रानियाँ? ) तेरी अनुचरी करें ( हो जायँ? ) पृष्ठ ५८।

( ४ ) 'अंगद-पैज में राज-सभा की ( के? ) गाम्भीर्य का ध्यान नहीं रक्खा गया है। पृष्ठ ५८।

( ५ ) उत्तर काण्ड में---'ज्ञान दीपक के परम परिश्रम से जलाये जाने और परम सुगमता से बुझ जाने का कथन कुछ उपहासास्पद हो गया है। पृष्ठ ६४।

( ६ ) 'कलिमल ग्रसेउ'---इत्यादि दोहा लिखकर गोस्वामी जी ने नानक, कबीर और दादू आदि के ग्रन्थों की निन्दा की है। पृष्ठ ६४।

( ७ ) बाल-काण्ड के अन्तर्गत आकाश-वाणी में 'मनु सत्यरूपा के स्थान पर कश्यप अदिति का नाम भ्रमवश आगया है'। पृष्ठ ७४।

( ८ ) विभीषण राजद्रोही और विश्वासघाती थे। तुलसीदास ने रामायण में उनके चरित का जो वर्णन किया है---रावण से बिगड़ कर रामचन्द्र जी के पास चला जाना और हनूमान को