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आयुर्वेद-महत्व

बढ़ गई। डाक्टरों ने अलबूमेनोरिया रोग बतलाया। पेशाब को काँच की नली में डाल कर उसमें तेज़ाब छोड़ते ही वह जम कर ठोस (Solid Mass ) हो गया। देख कर डाक्टर हैरान हो गये। यन्त्र-द्वारा रासायनिक परीक्षा से भी लड़की की हालत बहुत ख़राब मालूम हुई। डाक्टरों ने दस पाँच रोज़ दवा करके चिकित्सा बन्द कर दी। उन्होंने हरिहर-स्मरण की याद दिलाई। तब वैद्यों की दवा की गई। उन्होंने चन्द्रप्रभा बटी और शुक्तिचूर्ण ही से एक ही महीने में, लड़की को नीरोग कर दिया। इस बात को कोई ३ वर्ष हो गये। अब तक लड़की को वह रोग फिर नहीं हुआ।

दूसरा उदाहरण खुद मेरा है। पेट की कुछ शिकायत के कारण १५ दिसम्बर २५ को मैं कानपुर दवा कराने गया। वहाँ रोग बढ़ गया। मैं म्रियमाण दशा को प्राप्त हो गया। कई डाक्टरों ने बड़े प्रेम से मेरी चिकित्सा की। पर रोग न गया। बराबर दो महीने तक उन्होंने अनार और नारङ्गी के रस तथा थोड़े से हारलिक्स मिल्क ( डब्बों के विलायती दूध ) पर मुझे किसी तरह जीता रक्खा। जब उनकी चिकित्सा से कुछ भी लाभ न हुअा तब उन्होंने कृपापरवश हो कर मुझे मेरे मित्र वैद्यों को सौंप दिया। उस समय मेरा शरीर अस्थिमात्र रह गया था। जिगर बढ़ा हुआ था; उसमें दर्द भी था। मलावरोध की बड़ी शिकायत थी। ज्वर भी था। वैद्यों ने मिल कर एक कान्फरन्स की। उसमें दवा और पथ्य का निश्चय हुआ। तीसरे ही दिन ज्वर जाता रहा। और शिकायतें भी धीरे धीरे दूर हो गईं। और, दवा क्या दी गई थी--सिर्फ लौह और एक और दूसरी चीज़। कुछ समय तक सुबह मकरध्वज भी दिया गया। सो दवा तो योंही राम का नाम थी। वैद्यों की मुख्य दृष्टि पथ्य पर थी। एक महीने तक उन्होंने