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पूर्वी हिन्दी

बलगेरिया के निवासियों की संख्या के लगभग है। योरप में आस्ट्रिया नाम का एक बहुत बड़ा देश है। मर्दुमशुमारी से सिद्ध है कि पूर्वी हिन्दी के कुल बोलनेवालों की संख्या आस्ट्रिया के निवासियों से अधिक है। कुछ ठिकाना है। इस देश के छोटे छोटे प्रान्तों में योरप के कई देश समा जाते हैं।

अवधी का नाम बैसवारी भी है; क्योंकि बैसवारे ही में यह सब से अधिक बोली जाती है। जिस प्रान्त में बैस-शाखा के क्षत्रिय अधिक रहते हैं उसका नाम बैसवारा है। लखनऊ, रायबरेली और उन्नाव के जिलों में इस शाखा के क्षत्रियों की अधिकता है। डाक्टर साहब ने फतेहपुर का भी नाम दिया है; परन्तु हम अपने अनुभव से कह सकते हैं कि बैसवारे की और फतेहपुर की बोली में अन्तर है। पर व्याकरण सब कहीं का प्रायः एक ही सा है। अवध की बोली में जिन्होंने आज तक कविता की है उनमें तुलसीदास का नम्बर सब से ऊपर है। तुलसीदास को ग्रियर्सन साहब बहुत बड़ा ग्रन्थकार मानते हैं। उनकी राय है कि किसी समय दुनिया भर के आदमी एकमत होकर तुलसीदास का नाम उसी रजिस्टर में लिखेंगे जिसमें कि जगत् के सबसे बड़े कवियों और ग्रन्थकारों का नाम दर्ज है। इसमें कोई सन्देह नहीं। हम भी ऐसा ही समझते हैं। हमारी भी यही राय है। इस बोली में जितनी पुस्तकें लिखी गई हैं और जितनी कविता हुई है न तो उतनी पुस्तकें ही हिन्दी-भाषा-भाषियों की और किसी बोली में लिखी गई हैं और न उतनी कविता ही हुई है। कई अँगरेज़ और फरासीसी ग्रन्थकारों ने इस बोली पर प्रबन्ध लिखे हैं।

बघेली का माहात्म्य अवधी की अपेक्षा बहुत कम है। उसमें अच्छी अच्छी जितनी पुस्तकें बनी हैं सब प्रायः रीवां में बनी हैं।

स० स०-११