पूर्वी हिन्दी
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भारतवर्ष में प्रचलित भाषाओं और बोलियों के सम्बन्ध में डाक्टर ग्रियसन ने जो खोज की है उसका फल अब एक पुस्तकमाला के रूप में निकल रहा है। इस माला के एक एक खण्ड धीरे धीरे प्रकाशित हो रहे हैं। इसकी पाँचवीं जिल्द के दूसरे खण्ड में उड़िया और बिहारी भाषा (बाली) का वर्णन और उसके नमूने हैं। बिहारी बाली पुरानी प्राकृत-मागधी की कन्या है। पर आजकल की हिन्दी से भी उसका बहुत साम्य है। अतएव अपने प्रान्त के भाषा-प्रेमियों के भी जानने योग्य बहुत सी बातें उसमें हैं।
इस समय डाक्टर साहब की इस पुस्तक-माला की छठी जिल्द हमारे सामने है। उसमें पूर्वी हिन्दी का वर्णन और उसके ५८ नमूने हैं। कोई कोई नमूना बहुत ही मज़ेदार है। वह इतना मनोरञ्जक है कि उसे पढ़ कर हँसी रोके नहीं रुकती। ये नमूने बिलकुल देहाती बोली में दिये गये हैं। जो बोली देहात में स्त्रियाँ और अपढ़ आदमी बोलते हैं उसी के नमूने इसमें एकत्र किये गये हैं। जो कहानियाँ देहाती स्त्रियाँ, शाम के वक्त, आग के पास बैठ कर, अपने बच्चों को सुना कर उनको ख़ुश करती हैं उनके कई नमूने इसमें बहुत ही अच्छे हैं।
डाक्टर ग्रियर्सन ने हिन्दु-आर्यभाषाओं की एक मध्यवर्ती शाखा मानी है। उसी शाखा का नाम आपने पूर्वी हिन्दी रक्खा है। पुरानी अर्द्धमागधी को श्रापने पूर्वी हिन्दी की माँ माना है। पटना-प्रान्त की पुरानी भाषा मागधी और मथुरा-प्रान्त की पुरानी सौरसेनी कहलाती है। इन दोनों के मेल से बनी हुई