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समालोचना-समुच्चय

बिक गये। अब तीसरा संस्करण निकला है। इसी के विषय में हमें कुछ निवेदन करना है।

हमारे लिखे हुए, कालिदास के सम्बन्ध में, अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। उन में कालिदास के समय का निरूपण भी हुआ है। हमारा मत है कि कालिदास ईसा के पूर्व पहले शतक के कवि हैं। यही मत और भी कितने ही महाशयों का है। पर कई देशी और विदेशी विद्वान् इस मत को नहीं मानते। उन में से कोई तो कालिदास का समय सन् ईसवी का चौथा शतक, कोई पाँचवा और कोई छठा बताते हैं। इन विद्वानों के मत का भी उल्लेख, समय समय पर, हम कर चुके हैं। परन्तु अब कुछ ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं कि इन पिछले पण्डितों का मत बहुत दिन तक नहीं टिक सकता। उस पर धक्के पर धक्के लग रहे हैं। ध्रुव महाशय ने भी उसे एक ज़ोर का धक्का दिया है; उसे हिला डाला है। उन्होंने विक्रमोर्वशीय की भूमिका में बिलकुल ही नये ढंग से कालिदास के समय का विचार कर के उन्हें ईसा के पूर्व पहले शतक का निश्चित किया है। खेद इतना ही है कि आपका लेख गुजराती भाषा में है। अतएव जो पुरातत्ववेत्ता जर्मनी, फ्रांस, रूस और इंगलैंड में बैठे हुए कालिदास को पीछे खींचने की चेष्टा कर रहे हैं उन तक इस धक्के का वेग शायद न पहुँचे। ख़ैर, कुछ डर नहीं। ध्रुव महाशय विक्रमोर्वशीय का जो संस्करण, मूल संस्कृत में, निकालने वाले हैं उसमें वे अवश्य ही अपने विचार अंगरेज़ी में व्यक्त करेंगे।

ध्रुव महोदय ने पहले भास, अश्वघोष, वसुबन्धु, पतञ्जलि, सुबन्धु, भारवि, माघ, विशाखदत्त, श्रीहर्ष, भवभूति आदि में से कई पुराने कवियों का समय-निरूपण किया है। फिर प्रत्येक के ग्रन्थों में प्रयुक्त वृत्तों पर विचार किया है और यह दिखाया है