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हिन्दी विश्वकोष

“पद्य" के बदले पथ छप गया है, जिसका कारण प्रूफ पढ़नेवाले महाशय का दृष्टि-दोष ही जान पड़ता है।

यद्यपि इस प्रकार की इसमें अनेक त्रुटियाँ हैं, तथापि हमारी आन्तरिक कामना है कि इस कोष के काफी ग्राहक हो जायँ और यह निकलता जाय। साथ ही हमारी यह भी प्रार्थना है कि इसके विद्वान् सम्पादक अगले खण्डों के सम्पादन में विशेष मनोयोग, खोज और परिश्रम से काम लें।

[ जून १९२७ ]
 

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