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हिन्दी-विश्वकोष

किसी का। होता वह रबी ही की फ़सल में अधिक है। कोशकार की एक बात और भी बड़ी विचित्र और हँसी लानेवाली है वे कहते हैं कि अँकरा बैलों को खिलाया जाता है। क्या कभी उन्होंने उसे गाय-भैंस के सामने डाला और उन्होंने उसे नहीं खाया? उसे तो बकरियाँ, गाय, भैंसें और बैल सभी खाते हैं। गङ्गा के कछार में तो कहीं कहीं चारे के लिए दस दस बीस बीस बीघे ज़मीन में अँकरा ही अँकरा बोया जाता है। इन त्रुटियों से सूचित होता है कि सम्पादकों ने खोज नहीं की। सुन सुनाकर या बँगला का विश्वकोष देखकर या अपने कच्चे तजरिबे के आधार ही पर उन्होंने लेखनी चलाई है। अँकरा जैसी तुच्छ और बहुजन-ज्ञात वस्तु के विवेचन में जब इसके सम्पादक भूलें कर सकते हैं तब बड़े बड़े तत्वों और विज्ञान-विवेचनों में उनसे भूलें हो जाने की बहुत अधिक सम्भावना है।

प्रस्तुत खण्ड के पृष्ठ ८ पर अंगूर के वर्णन में लिखा गया है कि अंगूर की बेल के लिए―“बाँस का एक मण्डप सा बनाते हैं।" इस पर हमारी प्रार्थना है कि सारा हिन्दुस्तान बङ्गाल नहीं। बँगाल में बाँस बहुत होता है। वहाँ मण्डप क्या घर तक बाँस के बनते हैं। पर जहाँ बाँस का आधिक्य नहीं वहाँ अंगूर की बेल चढ़ाने के लिए और चीज़ों की भी टट्टियाँ बनती हैं। हमारे मकान के पास ही, कानपुर में, दो एक बाग़ हैं। उनमें अंगूर की बेलें चढ़ाने के लिए और लकड़ी भी काम में लाई गई है।

अंगरखा शब्द के विवेचन में कोशकारों ने लिखा है―“अँगरखा दोनों घुटनों के नीचे तक बनता है।" इस पर हमारा निवेदन है कि अंगरखा कमर तक भी बनता है और इन पंक्तियों का लेखक, जाड़ों में, सलूके के बदले ऐसे अनेक अंगरखे पहन