हिन्दी-विश्वकोष
अँगरेज़ी भाषा में एक बहुत बड़ा कोष है। उसका नाम हैः― Encyclopedia Britannica. बड़े और बहुविषय-पूर्ण होने ही के कारण उसका अनुवाद “विश्व-कोष" किया जाता है। क्योंकि विश्व की अनेक बातों का ज्ञान उस से होता है। कलकत्ते के श्रीयुत नगेन्द्रनाथ वसु ने उसी के टक्कर का एक ग्रन्थ बँगला में बनाया है और नाम उसका रक्खा है―विश्वकोष। इस कोष की २२ जिल्दें हैं। २७ वर्ष में यह कोष तैयार हुआ है। इस के कारण वसु महाशय की बड़ी ख्याति हुई है। निसन्देह यह कोष है भी बड़े महत्व का। वसु महाशय की विद्वत्ता, योग्यता, बहुज्ञता और प्रकाण्ड परिश्रम का यह आदर्श है। सुनते हैं, इसके प्रकाशन में कोई ७ लाख रुपया ख़र्च हुआ है। अब हिन्दी-भाषा-भाषी लोगों के-“आग्रह, उत्कण्ठा और आज्ञा" के वशीभूत हो कर वसु महोदय ने इस विश्वकोष का हिन्दी-संस्करण भी निकालना आरम्भ किया है। परन्तु इस कोष के दो हज़ार ग्राहक हुए बिना यह कार्य्य न चल सकेगा। हिन्दीविश्वकोष का पहला खण्ड जो प्रकाशित हुआ है उसी से हमें यह बात ज्ञात हई है। इस पहले खण्ड का प्रकाशन करनेवाली वसु ऐंड सन नाम की एक कम्पनी कलकत्ते में है। उस का दत्फ़र बाग़बाजार की कांटा-पुकुर गली में है। इसी कम्पनी ने हिन्दी-कोश के पहले खण्ड की एक कापी हमें भेजी है। और साथ ही छपा हुआ, बिना तारीख़ का, एक पत्र भी अंगरेजी में भेजा है। विश्वकोष हिन्दी में, पर पत्र अँगरेजी में! इस कृत्य का औचित्य हमारी समझ में नहीं आया। हिन्दी न जानने वाले अँगरेजी अखबारों के सम्पादकों के सुभीते के लिए यदि ऐसा किया गया है तो