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पूंजीवाद मेंं गरीबों की हानि

पूंजीवाद में गरीबों की हानि किया जाता है। किन्तु इस अतिरिक्त खर्च के लिए सरकार अनर्जित प्राय धादि पर कर लगा कर कुछ रुपया धनिकों से भी वसूल कर लेती है। करों के मामले में गरीबों की भलाई के लिए धनी भी अधिक रुपया देते हैं। इंग्लैण्ड में सरकार करों द्वारा धनिकों की एक-चौथाई या एक- तिहाई श्राप और बहुत अधिक धनिकों की आधी से अधिक श्राय किसी विशेष कार्य के लिए नहीं, बल्कि बिना किसी प्रतिफल के विशुद्ध राष्ट्रीय- चरण के लिए बलात् अपने अधिकार में ले लेती है । इसके लिए धनी इस हद तक कभी इन्कार नहीं करते कि उनका सामान कुर्क करने की नौबत भाजाय । यहां इन कार्यों की स्वीकृति देने वाले कानून अर्थ-विधान आदि नामों से हर साल पास किए जाते हैं, जबकि वास्तव में वे स्वत्वापहारी कानून होते हैं। धमी उनकी एक-तिहाई या श्राधी धाय जन्त होती है तो कभी आगे चल कर नौ-दशाँश या सब-की-सत्र जन्त होने लगे तो वहाँ के कानून, रीति-रिवाज, पार्लमण्ट-प्रणाली और नैतिकता में ऐसी कोई वात नहीं है जो उसे रोक सके। वहां जब कोई बहुत धनी प्रादमी मरता है तो सरकार अगले पाठ सालों तक उसकी सम्पत्ति की समस्त प्राय को जब्त कर लेती है। __कुछ ऐसे अप्रत्यक्ष कर भी होते हैं जिन्हें धनी और गरीब दोनों ही देते हैं । टन में से कुछ, जो खाने-पीने की तथा ऐसी ही दूसरी चीज़ों पर लगे होते हैं, खरीदते समय चीजों की कीमत के साथ चुका दिए जाते हैं। दूसरे स्टाम्प-कर है। यदि किसी धनी या गरीब को दस-पांच रुपये की रसीद भी देनी हो तो उसे उस पर टिकट लगाना पड़ेगा, अन्यथा वह बेकार होगी । कुछ कागजों पर जिनका गरीब कभी उपयोग नहीं करते, सैकड़ों रुपये के स्टाम्प लगाने होते हैं। इस तरह धनिकों की पूंजी भनेको रूपों में उनकी जेयों से निकल कर राष्ट्रीय कोप में जाती है। ये सव विशुद् समाजवाद के काम है। इनसे सरकार करोड़ों रुपये प्रतिवर्ष इकट्ठा करती है।