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पूँजीवाद मे गरीबों की हानि

पूंजीवाद में गरीबों की हानि वहां कोयले की कीमत घट जाती है तो कभी बढ़ जाती है । इसका कारण यह है कि जब कोयले कम होते हैं तो महंगे और जब अधिक होते है तो सस्ते हो जाते हैं । किन्तु कोयले कम क्यों हो जाते हैं ? इसका कारण यह है कि एक तो पाजकल कोयला व-ब व्यावसायिक भट्टियों और जहाजों में जलाया जाता है। इससे कोयले की कीमत अधिक होगई है शोर कोयले की कीमत बढ़ जाने से समुद्र के नीचे खाने खोदना भी लाभप्रद होगया है । इन खानों पर बहुत अधिक खर्च पड़ता है। इससे सय कोयले की क्रीमन इतनी गिर जाती है कि इन ग्वानों में से निकाला हुधा कोयला लाभ से न बिक सके तो इनमें काम बन्द कर दिया जाता है और फिर तबतक शुरू नहीं किया जाता जबतक बाजार में कोयला कम रह जाने से उसका भाव फिर इतना बढ़ नहीं जाता कि उनमें से निकाला हुया कोयला लाभ के साथ बिक सके। इस प्रकार कीमतें हमेशा ऊंची रक्खी जाती हैं ताकि अच्छी खान हमेशा मुनाफा उठा सकें। यदि इन सभी खानों को, जिम तरह एक पोस्ट-मास्टर-जनरल के अधीन डाकखानों को रक्खा जाता है, वैसे एक कोल-मास्टर-जनरल के अधीन कर दें तो वह सभी लोगों को कोयला घासत मूल्य में देने का प्रयन्ध कर सकता है। वह मस्ती खानी के मुनाफे से महंगी खानों को सदा चालू रग्ब कर बाजार में हमेशा काफी कोयला रख सकता है और कोयले का एक स्थिर भाव रख सकता है। किन्तु कोयले की खानों के मुनाफाखोर मार्लिक राष्ट्रीयकरण के इस काम को बोल्शेविकों का दुष्टतापूर्ण आविष्कार बताते हैं। हमने देख लिया कि इंग्लैण्ड के लोगों को कोयले की खानों पर व्यक्तिगत अधिकार होने से किस प्रकार सदा गांठ कटानी होती है। गेहूं, चाकू, छुरी, कील-कांटा श्रादि चीजें खरीदने में लोगों को इसी प्रकार घाटे में रहना होता है। कारण, इन सभी चीजों पर व्यक्तिगत अधिकार है। इससे वे हमें डाक के टिकटी की तरह औसत मूल्य में नहीं मिलती। यदि इन चीजों का गष्ट्रीयकरण हो जायगा तो गरीबों को श्रालसी लोग लूट कर न खा सकेंगे।