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पूँँजीवाद मेंं गरीबों की हानि

पूंजीवाद में ग़रीबों की हानि व्यवसाय हैं। इनका राष्ट्रीयकरण कमी से है। यदि कोई कहे कि इनके कारण वे देश चांद हो रहे हैं तो उसे तुरन्त प्रान्तीय पागलखाने में मेजने की व्यवस्था करनी पड़ेगी जो कि बुद्द एक राष्ट्रीय संस्था है। हमारे शहरों में म्यूनिस्पल्टियाँ शहरों के बहुत से कामों का प्रबन्ध करती हैं। वह स्थानीय राष्ट्रीयकरण है। पार्लमेण्ट या सार्वदेशिक सभायें मार्वदेशिक कार्यों को पूरा करती है, वह मावदेशिक राष्ट्रीयकरण है। महकमा डाक उसका एक उदाहरण है। आजकल किनने ही काम कुछ नो निजी कम्पनियों और दुकानों द्वारा होते हैं और कुछ सार्वजनिक रूप से । उदाहरण के लिए लन्दन के एक जिले में बिजली के प्रकाश का प्रबन्ध निजी कम्पनियों करती है तो दूसरे में न्यूनिस्पल्टियों । उनमें न्यूनिस्पैलियों का प्रकाश ही मस्ता पड़ता है; क्योंकि उनका काम ईमान्दारी और योग्यता के माय होता है, चे अपनी पूनी पर थोड़ा व्याज लगाती हैं और मुनाफा बिल्कुल नहीं लेती। हिन्दुस्तान का डाक विभाग तमाम हिन्दुस्तान में चिठियों पहुँचाना है और बाहरी देशों में भी भेजना है। वह यह काम पहिले थोडे महसूल में करता था, किन्तु अब उसने महसूल पहिले की अपेक्षा अधिक कर दिया है । फिर भी वह किसी भी निजी खबर लाने-ले जाने वाले की अपेक्षा बहुत कम पैसा लेता है । निजी कम्पनियाँ यदि डाक लाने-ले जाने का प्रबन्ध देश के थोड़े हिस्से में करें तो वे राष्ट्रीय डाक विभाग की अपेक्षा प्रति चिट्ठी कम पैसा भी ले सकनी हैं, क्योंकि पास में चिट्ठी भेजने में इतना कम खर्च पड़ेगा कि उसका अन्दाज़ नहीं लगाया जा सकता। सम्भव है वे चार पैसे में सौ चिट्टी के हिसाब से या इससे भी कम में चिट्टियाँ ले जा सकें, किन्तु यदि दाक-विभाग निजी कम्पनियों को डाक लाने-ले जाने की इजाजत दे दे तो इसका परिणाम यह होगा कि वे पास- पास की चिड़ियों को राष्ट्रीय डाक विभाग की अपेना थोडे महसूल में ले जाकर और ला कर मुनाफा कमा लेंगी और दूर-दूर की चिट्ठियों को राष्ट्रीय बाक विभाग के लिए छोड़ देंगी जिन्हें लाने-ले जाने में राष्ट्रीय