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समाजवाद और पूंजीवाद का अन्तर


सम्पत्ति और व्यक्तियों के बीच हुए समझौतों और इकरारों के बजाय पूर्णतः राष्ट्रहित की दृष्टि से हुए समझौते और इकरार शामिल है,) जव कमी आय की समानता पर आक्रमण हो तो पुलिस के हस्तदक्षेप को और उद्योग-धन्धों तथा उनकी उत्पत्ति पर सरकार के पूर्ण नियंत्रण को आवश्यक समझते हैं।

स्पष्टतः दोनों पद्धतियों के आधारभूत सिद्धान्त परस्पर-विरोधी हैं। इंग्लैण्ड की पार्लमेण्ट में इन दोनों पद्धतियों के दो प्रतिनिधि-दल हैं। अनुदार-दल को पूंजीवादी पद्धति का प्रतिनिधि और मजदूर दल को समाजवादी पद्धति का प्रतिनिधि कहा जा सकता है । यह ठीक है कि उन दलों के सदस्यों में से ऐसे कम होते हैं जिन्होंने अपनी-अपनी पद्धतियों के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होता है। बहुत से मजदूर-सदस्य समाजवादी नहीं होते । बहुत से अनुदार सदस्य भू-सत्तावादी ज़रूर हैं जिन्हें 'टोरी' भी कहते हैं। वे सब के-सब किसी सिद्धान्त या पद्धति पर चलने के बजाय एक कठिनाई से निकल कर दूसरी में उलझते और उसे सुलझाते रहते हैं। ऐसी स्थिति में अधिक-से-अधिक यह कहा जा सकता है कि यदि अनुदार दल की कोई नीति है तो वह पूँँजीवादी नीति है और मजदूर-दल की यदि कोई नीति है तो वह समाजवादी नीति है । वहां यदि कोई पूँँजीवाद का समर्थन करना चाहे तो वह अनुदार-दल के सदस्य को अपग मत दे, यदि समाजवाद का समर्थन करना चाहे तो मजदूर-दल के सदस्य को।

ठीक ऐसा ही हम हिन्दुस्तान में भी कर सकते हैं। यहां इस प्रकार के दो दल मौजूद हैं, एक ग़रीबों से सहानुभूति रखने वाला और दूसरा उसका विरोधी, किन्तु इस देश की परिस्थिति राजनैतिक पराधीनता के कारण इंग्लैण्ड की अपेक्षा भिन्न होने से यहाँ विरोधी यानी अनुदार दल कई शक्तियों का संवात स्वरूप है ।