समाजवाद : पंजीगट पुण्य कार्य समझने हैं ! एमसे यहकर श्रमय और प गा ? समाजवाद तो दरिद्रता में शृणा करता है और गरीयों को निःप पर देना चाहता है। समाजवाद में मार्गय गन यानों पर उमी नगद मुकदमे चलाए जायंगे जिस नरा. कि याज पश्चिमी देशों में नंगे गर्न वालो पर चलाए जाने हैं। भिन्ना कंगानों को म्याभिमान-शून्य बनाना और दाताओं को घमंडी; या दोनों में एगा मा पनी है। साथ ही समाजवाद याह भी मानता है कि जिस देश की व्यवस्था न्याय और विवेक के साथ होती हो यहां गर्गय लिए न नो भिगा पाने या कोई कारण होगा और न धनिकों के लिए भिगा देने का कोई प्रमर की। जो लोग परोपकारी यनना चानि है उन याद गगना चाहिए किरिना चोरी किए कोई परोपकार ना कर सपना । जो मदगुण लोगों के कष्टों द्वारा गृन्दि पाते। उन माग ना कहा जा सकता । स्तिनं ही लोग सहली, 'यस्पतालों, धर्मशालाओं, कॅधों श्रादि के निर्माण में शार अनेक परोपकारी संस्थाओं तथा पादित मायक कोपों में अन्यधिक दिलचपी लत है। किन्तु यदि इस प्रकार के परोपकारों की आवश्यकता ही मिटा दी जाय तो ये अपने याचार-विचारों के नुधारने में अपनी गतियों का मदन्यय कर सकेंगे शीर दूसरों की चिन्ता मादकर अपनी फ्रिफ रमना सौग्य जायंगे। दया के लिए दुनिया में मंगा गुंजाइश रहेगी; किन्तु वष्ट निगारणीय पुधा और रोगों पर ययांद न की जानी चाहिए । सहानुभूति का प्रयोग करने के लिए ऐसी भयंकरताओं को अस्तित्व में रखना टीक ऐसा ही है जैसा कि अपने घरों में भाग लगा कर अग्नि घुमाने पाले जिनों की शक्ति और उनके संचालकों के माहम का उपयोग करना । किन्तु इस तरह तो ममाजवाद या मी नहीं मकना, क्योंकि ऐसा तो अयतक होता ही शाया है। प्राय की समानता करने का काम एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का काम नहीं है, वह तो सार्वजनिक काम है। पिना सब लोगों की सहायता के अर्थात् कानून की सहायता के श्राय की समानता नहीं हो सकती। किन्तु केवल एक कानून द्वारा ही यह सब कुछ न हो जायगा,
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